राजकिशन नैन
उर्दू के वरिष्ठ अदीब एवं भाषाविद् डॉ. राणा प्रताप गन्नौरी द्वारा प्रणीत ‘मेरे अदबी मजामीन’ हिंदी के पाठकों और हिंदी के जरिये उर्दू जगत की बड़ी विभूतियों को पढ़ने और चाहने वालों के लिए एक मुकम्मल किताब है। उर्दू अदब के जो लोग फारसी लिपि में उर्दू नहीं पढ़ सकते, वे इन निबंधों को सरल हिंदी में पाकर खुश होंगे। मिर्जा गालिब, अलताफ हुसैन ‘हाली’, जैमिनी ‘सरशार’, डॉ. जगन्नाथ ‘आजाद’, रघुपति सहाय ‘फिराक’, कालिदास गुप्ता ‘रज़ा’ और ख्वाजा अहमद अब्बास जैसी उर्दू की नामवर हस्तियों के अलावा उर्दू साहित्य की ठेठ विधाओं तथा रिवायतों को लेकर अतीत में लिखे गए जो रोचक निबंध पुस्तक में संगृहीत हैं, वे दस्तावेजी हैसियत के हामिल हैं।
इन निबंधों में कालजयी कलमकारों की इल्मी, अदबी और निजी बातें अविस्मरणीय अंदाज में बयां की गई हैं। अपने समय की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक स्थितियों का जो चित्रण इन उम्दा निबंधों में किया गया है वह साहित्यिक जगत के बड़े काम का है। पहला निबंध उर्दू जबान, उर्दू साहित्य, शिक्षा, सामाजिक एवं सांस्कृतिक जागृति तथा हिंदुस्तानियत में ताउम्र इजाफा करने वाले उन मास्टर रामचंद्र पर केंद्रित है जो भारत के पिछड़ेपन का कारण पाखंडों और अंधविश्वासों को मानते थे। उनका मानना था कि अज्ञान से पिंड छुड़ाए बिना भारत की प्रगति संभव नहीं है।
दूसरा निबंध उर्दू के अजीम शायर गालिब के बारे में है। गालिब बेशक फारसी शायरी पर फिदा थे, किंतु उनकी तमाम ख्याति उर्दू शायरी के बूते पर है। तीसरा निबंध अलताफ हुसैन ‘हाली’ को लेकर है। हाली फारसी के विद्वान होते हुए भी संस्कृत, हिंदी और ब्रजभाषा के सरपरस्त थे। हाली गालिब के प्रिय शिष्य थे। सर सय्यद अहमद खां हाली के बारे में गर्व से कहा करते थे कि ‘अगर कयामत में खुदा मुझसे पूछेगा कि तुमने दुनिया में क्या काम किया तो मैं कहूंगा कि मैंने हाली से मुसद्दस लिखवाया था।’ ‘मुसद्दसे हाली’ वैसी ही अमर कृति है जैसी मैथिलीशरण गुप्त की ‘भारत-भारती’ है। हाली शायरी में सरलता व सहजता के हामी थे। वे लफ्फाजी से दूर रहते थे। जैमिनी ‘सरशार’ ग़ज़ल और नज्म दोनों में महारत रखते थे। आजादी की लड़ाई के दौर में उर्दू के जिन शुअरा ने पुरजोश नज़्में कही हैं, उनमें जनाब जैमिनी ‘सरशार’ का नाम खास मुकाम का मुस्तहक है। प्रो. जगन्नाथ ‘आजाद’ ने शायरी और समीक्षा के क्षेत्र में खूब लोहा मनवाया है। आजाद साहब ने प्रो. तिलोक चंद ‘महरूम’ की तमाम रचनाएं छपवाकर एक महामूल्यवान धरोहर को संरक्षित किया है। मुसलमानों के हित की जो बातें आजाद साहब ने अपनी नज्म ‘भारत के मुसलमां’ में कही वैसी कोई दूसरा मुसलमान शायद ही कह सके। रघुपति सहाय ‘फिराक’ की शायरी देश प्रेम के भाव से ओतप्रोत है। मुशायरों में वे झूम-झूमकर पुर-अन अंदाज में जब शे’र पढ़ते थे तो कयामत बरपा हो जाती थी। वक्त की कैफियतों का जो शऊर ‘फिराक’ को है वैसा उर्दू के किसी और शायर के पास नहीं मिलता।
माहिर-ए-गालिबियात कालिदास ‘रजा’ गुप्ता और ख्वाजा अहमद अब्बास के बहुआयामी व्यक्तित्व से जुड़े निबंध भी बेनजीर हैं। उर्दू शायरी में गुरु-शिष्य परंपरा, उर्दू शायरी में तजमीनकारी, उर्दू शायरी में शहरों का नामोल्लेख व मक्तओं में एकाधिक शायरों के तखल्लुस निबंध भी पठनीय हैं।
पुस्तक : मेरे अदबी मज़ाबीन लेखक : राणा प्रताप गन्नौरी प्रकाशक : अयन प्रकाशन, महरौली, नई दिल्ली पृष्ठ : 102 मूल्य : रु. 220.