सत्यवीर नाहड़िया
बेहद प्राचीन अर्द्धसम मात्रिक छंद दोहा आज शिखर पर है। गागर में सागर तथा मुट्ठी में आकाश भर लेने की विशेषता के अलावा अपनी मारक क्षमता के लिए विख्यात रहे दोहे का अपना अनूठा इतिहास रहा है। साहित्यकार डॉ. अनंतराम मिश्र ने ‘दोहे की आत्मकथा’ में क्या खूब लिखा है—भाषा मेरा शरीर, लय मेरे प्राण और रस मेरी आत्मा है। कवित्व मेरा मुख, कल्पना मेरी आंख, व्याकरण मेरी नाक, भावुकता मेरा हृदय तथा चिंतन मेरा मस्तिष्क है।
दूसरे शब्दों में मात्र तेरह-ग्यारह मात्राएं जोड़ लेने भर दोहा पूरा नहीं होता। इसकी कसावट-बनावट ही इसके कथ्य-शिल्प को जीवंत कर पाती है। आलोच्य कृति ‘त्रिलोकी सतसई’ एक दोहा सतसई है, जिसमें 31 शीर्षकों के अंतर्गत 730 दोहे शामिल किए गए हैैं। तीन काव्य कृतियां दे चुके वरिष्ठ कवि त्रिलोक फतेहपुरी का यह प्रथम दोहा संग्रह है।
संग्रह की इस दोहा यात्रा में मां, बेटियां, मित्र, शिष्य, माता-पिता, नारी जैसे संबंधों की सूक्ष्म मानवीय संवेदना पर मार्मिक दोहे शामिल हैं। रचनाकार ने सामाजिक विसंगतियों एवं विद्रूपताओं पर भी प्रासंगिक दोहे लिखे हैं। शब्दों का महात्म्य, देश प्रेम, प्रकृति, किसान, धर्म और कर्म, नीति-रीति, चिंता-चिंतन जैसे शीर्षकों के अंतर्गत शास्त्रों की नीतिगत बातों को दोहा रूप दिया गया है, जैसे–
माता धरती से बड़ी, बड़ा गगन से बाप।
दानी धन से है बड़ा, छल से भारी पाप।
चर्चित चेहरे, गठबंधन, भ्रष्टाचार, राजनीति, अत्याचार, अन्याय, आक्रोश, शोषण, कलयुगी बाबा आदि शीर्षकों के अंतर्गत संबंधित प्रासंगिक रचनाधर्मिता शामिल की गई है। संग्रह में हास्य-व्यंग्य प्रधान दोहे प्रभाव छोड़ते हैं। नेताओं को समर्पित एक दोहा देखिए :-
जात-धर्म के नाम पे,
जग में डालो फूट।
मूंड रहेंगे फूटते,
खूब मचाओ लूट।
संग्रह में कुछ दोहों में सपाट बयानी, छंद दोष तथा वर्तनी की अशुद्धियां अखरती हैं। कृति का आवरण शीर्षकानुरूप है।
पुस्तक : त्रिलोकी सतसई रचनाकार : त्रिलोक फतेहपुरी प्रकाशक : शब्दांकुर प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 124 मूल्य : रु. 200.