पौराणिक नारियों की समकालीन गाथा
डॉ. देवेंद्र गुप्ता
वैदिक काल से ही गाथा के रूप में प्रचलित कथाएं कही और सुनी जाती रही हैं। वीर नायकों, ऐतिहासिक पात्रों, प्रेमी युगलों तथा विभिन्न समुदायों और जातियों की गौरवगाथाओं का वर्णन पारंपरिक गायन शैली में किया जाता रहा है। लोक परंपराओं में रची-बसी यह मौखिक परंपरा समय के साथ गद्य और पद्य दोनों रूपों में साहित्य की एक लोकप्रिय शैली बन गई। बौद्ध और जैन साहित्य में भी गाथा एक महत्वपूर्ण विधा रही है और संस्कृत के महाकाव्य—जैसे रामायण और महाभारत—भी अपने गाथात्मक स्वरूप में ही लिखे गए हैं।
हाल ही में रेनू अंशुल का उपन्यास ‘गाथा : पंचकन्या’ गद्य रूप में प्रकाशित हुआ है। इस उपन्यास में लेखिका ने हिंदू धर्म के प्रमुख धर्मशास्त्रों से पांच प्रमुख नारी पात्रों के माध्यम से भारत की प्राचीन परंपराओं का महिमामंडन किया है। ये पांच कन्याएं—अहिल्या, तारा, मंदोदरी, द्रौपदी और कुंती—युगों से अपनी-अपनी चारित्रिक विशेषताओं के कारण आज भी जनमानस में सम्मानित स्थान रखती हैं। ये सभी स्त्रियां अपने असीम साहस और विद्वता के बल पर उस समय के पुरुष प्रधान समाज में न तो भयभीत हुईं और न ही पीछे हटीं। परिस्थिति विशेष में इन नारियों के आचरण की कुछ विशेषताएं ही उन्हें महान और श्रेष्ठ बनाती हैं।
पांच खंडों में विभक्त यह विस्तृत उपन्यास इन पांचों नारी पात्रों की कथा और उनसे संबंधित उपकथाओं को क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत करता है। चूंकि रेनू अंशुल आकाशवाणी से जुड़ी रही हैं, अतः उनकी लेखन शैली में गाथा का स्वरूप स्पष्ट झलकता है। यह विशेष शैली इन प्राचीन गाथाओं को समकालीन दृष्टिकोण से पुनः प्रस्तुत करती है।
उपन्यास में लेखिका पुराण, इतिहास और स्मृति को कथा सूत्र के माध्यम से इस तरह पिरोती हैं कि पाठक को गेयता और प्रवाह का आनंद प्राप्त होता है। मुहावरेदार भाषा, आधुनिक विमर्श, पहचान, अस्मिता और सामाजिक न्याय की अवधारणाओं की व्याख्या लेखिका ने पुराणिक गाथाओं के माध्यम से अत्यंत प्रभावी रूप में की है।
निःसंदेह, लेखिका रेनू अंशुल ने परंपरागत गाथात्मक शैली को एक नए अंदाज़ और रचनात्मकता के साथ प्रस्तुत किया है। आधुनिक उपन्यास में गाथा शैली का यह प्रयोग न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक विमर्श, नारी अस्मिता और संघर्ष की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम भी सिद्ध होता है।
पुस्तक : गाथा : पंचकन्या लेखक : रेनू अंशुल प्रकाशक : प्रालेक प्रकाशन, मुंबई पृष्ठ : 367 मूल्य : रु. 499.