संवेदनाओं का संघर्ष और ऐतिहासिक अंतर्दृष्टि
डॉ. अजय शर्मा को पंजाब के एक ऐसे समकालीन हिन्दी उपन्यासकार होने का गौरव प्राप्त है, जिनके अब तक 16 उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। एक नया उपन्यास सृजित करते समय एक समर्थ लेखक को एक नई समानांतर दुनिया का निर्माण करना होता है। डॉ. अजय इस चुनौती पर खरे उतरे हैं। वे अपने प्रत्येक उपन्यास में एक नया विषय लेकर प्रस्तुत हुए हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि उनके छह नाटक और एक पंजाबी कहानी-संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं। वर्तमान में वे त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका साहित्य सिलसिला के संपादन से जुड़े हुए हैं।
डॉ. अजय शर्मा अपने सद्यः प्रकाशित सत्रहवें उपन्यास ‘खेलै सगल जगत’ में समकालीन हिन्दी उपन्यास के लिए लगभग एक नया विषय—‘सेक्सुअल हरासमेंट ऑफ ए क्राइम’—लेकर पाठकों से संवाद करते हैं। इस विषय पर उपन्यास का कथानायक एक कॉलेज में वक्तव्य देने वाला होता है। एक क्षण के लिए उसे लगता है कि किसी पुरुष का यौन शोषण किसी स्त्री द्वारा कैसे संभव हो सकता है। कॉलेज से लौटने पर उसकी पत्नी ममता उसे बताती है कि यह संभव है। वह साझा करती है कि उसका यौन शोषण कॉलेज में उस तथाकथित ‘अंकल’ ने किया था, जिसकी देखरेख में उसके माता-पिता ने उसे छोड़ा था।
कथानायक अपने मित्र अनिल से बात करता है, जो उसे बताता है कि ऐसा होना संभव है। वह एक घटना का उल्लेख करता है जिसमें कुछ समय पहले दिनदहाड़े चार लड़कियों ने एक लड़के को अपनी यौन कुंठाओं का शिकार बना लिया था। चूंकि वे चारों अफसरों की बेटियां थीं, इसलिए यह मामला, एक अखबार में छपने के बावजूद, बाद में दबा दिया गया।
यह उपन्यास ‘खेलै सगला जगत’ मुख्यतः राम मंदिर के संदर्भ में अनेक ऐतिहासिक तथ्यों की पड़ताल करता है। लेखक एक स्थान पर लिखते हैं कि ‘पुलिस कारसेवकों को ढूंढ़ रही है और उन पर ज़ुल्म कर रही है। कई कारसेवकों की जान चली गई।’ उपन्यास में एक पात्र कहता है, ‘वैसे मुझे उम्मीद है कि मेरे जीते-जी अयोध्या में श्रीराम मंदिर बन जाएगा। जिस पर्व के लिए ज्ञात-अज्ञात कारसेवकों ने अपने प्राणों की आहुति दी, वह एक दिन महापर्व बन जाएगा।’ वास्तव में, पात्र की यह शुभाशंसा अब सत्य सिद्ध हो चुकी है।
उपन्यासकार ने वर्षों से चली आ रही हिन्दू-मुस्लिम राजनीति का भी पर्दाफाश किया है। लेखक इस बात की ओर संकेत करते हैं कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही कुछ ऐसे लोग, जो देश का हित नहीं चाहते, अपने निहित स्वार्थों को साधने के लिए मुस्लिम समुदाय को ‘तुरुप का पत्ता’ बनाकर इस्तेमाल करते आए हैं। हालांकि, लेखक ने हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे पर भी प्रकाश डाला है।
लेखक ने इस उपन्यास को विभिन्न अध्यायों में विभाजित किया है, और प्रत्येक अध्याय का पृथक-पृथक नामकरण भी किया है। समग्रतः पूरा उपन्यास अयोध्या के इर्द-गिर्द घूमता प्रतीत होता है। उपन्यास की भाषा में जैसे राममयता समा गई हो।
पुस्तक : खेलै सगल जगत लेखक : डॉ. अजय शर्मा प्रकाशक : साहित्य सिलसिला पब्लिकेशन, जालंधर पृष्ठ : 143 मूल्य : रु. 200.