मास्क नहीं खोलेंगे
मास्क पहन कर गुड़िया रानी, चली आज पढ़ने को।
सेनेटाइजर लिया साथ में, हाथों पर मलने को।।
दूर-दूर बैठेंगे सारे, मास्क नहीं खोलेंगे।
खाना अदला-बदली ना हो, सब को यह बोलेंगे।।
बजे खेल का घंटा टन-टन, बाहर जा खेलेंगे।
पढ़ना-लिखना साथ-साथ में, मस्ती भी ले लेंगे।।
बोर हो गये घर पर बैठे, बुरा बहुत कोरोना।
बाहर निकलो नियम पाल कर, टीकाकरण करो ना।।
वायरस से लड़ने की ताकत, आएगी जब पूरी।
तब कोरोना खुद ही हम से, रख लेगा जी दूरी।।
– रोचिका अरुण शर्मा
आ गया जाड़ा
आ गया जाड़ा फिर भाई, निकले कंबल और रजाई।
सर्दी से सब कांपें थर-थर, मौसम ने ली है अंगड़ाई।
सुबह-सवेरे देखो हर ओर, कितनी गाढ़ी धुंध है छाई।
पहन लिए जब स्वेटर तीन, तब थोड़ी-सी गर्मी पाई।
पी-पी गर्म चाय के प्याले, दादा जी ने ठंड भगाई।
इस मौसम में आॅफिस जाते, पापा पहनकर सूट और टाई।
ठंड के मारे दीपा मौसी, तीन दिनों तक नहीं नहाई।
निकले जिस दिन धूप करारी, सर्दी से कुछ राहत पाई।
– हरीश कुमार ‘अमित’
भैया सर्दी के दिन आए
पावस की हो गई विदाई। निकले स्वेटर कोट रजाई।
निश-दिन धुंध कुहासा छाए। भैया सर्दी के दिन आए।
आई सर्दी चुपके-चुपके। जीव-जन्तु सब घर में दुबके।
वृद्ध सभी सिहरन सी पाए। भैया सर्दी के दिन आए।
थर-थर थर-थर काया कांपे। लोग बैठकर अलाव तापें।
फिर भी सर्दी बहुत सताए। भैया सर्दी के दिन आए।
ग्राफ रोज पारे का घटता। सुबह जागना दुष्कर लगता।
बच्चे कैसे शाला जाएं? भैया सर्दी के दिन आए।
सबको लगती धूप सुहानी। जब जब आती सर्दी रानी।
गजक-रेवड़ी मन को भाएं। भैया सर्दी के दिन आए।
– उदय मेघवाल ‘उदय’
फिर आई सर्दियां
फिर से आई सर्दियां, निकली पुरानी वर्दियां।
ट्रंक-पेटियां खोली गईं, गुदड़ियां भी टटोली गईं
भूले सामान संभाले गए, भारी कपड़े निकाले गए।
मोटे कंबल और रजाइयां, फिर से आई सर्दियां।
ठिठुरे -ठिठुरे घूम रहे, खुशियों के संग झूम रहे।
सिर पर टोपी हाथ दस्ताने, कार्टून से लगें सयाने।
पहन कर जाकेट जर्सियां, फिर से आई सर्दियां।
दादी-नानी चूरी चूरें, बच्चे खाएं मूंगफली खजूरें।
जीम रहे वे बन कर पीर, गर्म गर्म हलवा और खीर।
कभी चाय की चुस्कियां, फिर से आई सर्दियां।
– अरुण कुमार कैहरबा
धूप
जापानी गुड़िया-सी धूप,जादू की पुड़िया-सी धूप।
गठरी खोले बैठी देखो, आंगन में बुढ़िया-सी धूप।
कूद रही पेड़ों-छज्जों पर, बलखाती चिड़िया-सी धूप।
कमरे के अंदर घुस आती, शरारती चुहिया-सी धूप।
सब पर अपनी धाक जमाए, गांव के मुखिया-सी धूप।
देती है आराम बहुत जो, ऐसी ही खटिया-सी धूप।
आओ इसको लाड लड़ाएं, प्यारी है बिटिया-सी धूप।
ख़ुशियों की ख़ुशबू ले आती, सुंदर फुलबगिया-सी धूप।
समझ नहीं पाता हर कोई, कन्नड़ या उड़िया-सी धूप।
सर्दी के मौसम में लगती, रसवाली गुझिया-सी धूप।
– घमंडीलाल अग्रवाल