केवल तिवारी
बच्चों की बातें, बच्चों की ही तरह होती हैं। कभी मजाक-मजाक में गंभीर बात और कभी गंभीरता वाली बात भी हंसी-मजाक के अंदाज में। इसी तरह उनको सुनायी जाने वाली या उनके लिखी जाने वाली कहानियां भी होनी चाहिए। हल्का-फुल्का अंदाज और कुछ-कुछ सीख। ऐसी ही है डॉ. शील कौशिक की नयी किताब ‘माशी की जीत।’ बच्चों के लिए कहानियां हैं इसमें। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, घर-परिवार सभी कुछ है। घरों के आसपास पार्क में बच्चे खेलते हैं तो अनेक तरह के लोगों से उनका सामना होता है। कुछ हैं जो बच्चों से प्रेम करते हैं और कुछ होते हैं ‘खड़ूस।’
कहानी ‘चिड़ियों की चहक’ में एक बच्ची आखिरकार अपने पिता को ‘सुधार’ देती है। वह कहती है-आपके कड़क स्वभाव के कारण हमारी छत पर पंछी नहीं आते। कहानी ‘टीटू कबूतर’ के अंत में दादी वादा करती है कि वह छुट्टी वाले दिन कबूतरों के झुंड के बीच शरद को लेकर आएंगी, दाना डालने। काले रंग से डरने वाला चिंटू आखिरकार एक एक्सीडेंट के बाद सुधर जाता है। हालांकि, उसे काले रंग के प्रति वैसा भाव न रखने की सीख उसे अन्य तरीके से भी दी जा सकती है।
‘खिल उठी उदास छतरी’ में पौधरोपण की सीख अच्छे अंदाज में दी गयी है। पुस्तक की शीर्षक वाली कहानी यानी ‘माशी की जीत’ में लेखिका ने हिम्मत न हारने की सीख दी है। कुल 16 कहानियों वाली इस किताब की भाषा सरल है।
पुस्तक : माशी की जीत लेखक : डॉ. शील कौशिक प्रकाशक : साहित्यागार, जयपुर पृष्ठ : 88 मूल्य : रु.200.