Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

ब्रेक पांइट

लघुकथा
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

सुकेश साहनी

‘मां जी, आपके पति बहुत बहादुर हैं...।’ राउण्ड पर आए डॉक्टर ने नाथ की पत्नी से कहा, ‘एकबारगी हम भी घबरा गए थे, पर उस समय भी इन्होंने हिम्मत नहीं हारी थी। अब खतरे से बाहर हैं।’

Advertisement

पूरे अस्पताल में नाथ की बहादुरी के चर्चे थे। चलती ट्रेन से गिरकर उनका एक बाजू कट गया था और सिर में गम्भीर चोट आई थीं। घायल होने के बावजूद उन्होंने दुर्घटना स्थल से अपना कटा हुआ बाजू उठा लिया था और दूसरे यात्री की मदद से टैक्सी में बैठकर अस्पताल पहुंच गए थे। चार घण्टे तक चले जटिल ऑपरेशन के बाद वह सात दिन तक आई.सी.यू. में जिंदगी और मौत के बीच झूलते रहे थे। आज डॉक्टरों ने उन्हें खतरे से बाहर घोषित कर जनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया था।

‘विक्की दिखाई नहीं दे रहा है...?’ दवाइयों के नशे से बाहर आते ही उन्होंने पत्नी से बेटे के बारे में पूछा।

‘सुबह से यहीं था, अभी-अभी घर गया है।’ शीला ने झूठ बोला, जबकि सच्चाई इससे बिल्कुल उलट थी। मां-बाप को छोड़कर सपत्नीक अलग रह रहा पुत्र अपनी नाराजगी के चलते पिता के एक्सीडेंट की बात जानकर भी उन्हें देखने अस्पताल नहीं आया था।

थोड़ी देर तक दोनों के बीच मौन छाया रहा।

‘मेरे ऑपरेशन की फीस किसने दी थी?’ उन्होंने फिर पत्नी से पूछा।

इस दफा शीला से कुछ बोला नहीं गया। वह चुप रही। नाथ ने आंखें खोलीं और सीधे पत्नी की आंखों में झांकने लगे। शीला ने जल्दी से आंखें चुरा लीं। उनको अपनी जीवनसंगिनी का चेहरा पढ़ने में देर नहीं लगी। उनकी आंखें पत्नी की कलाई पर ठहर गईं, जहां से सोने की चूड़ियां गायब थीं।

‘शाबाश पुत्रा!!’ उनके मुंह से दर्द से डूबे शब्द निकले और उनकी आंखें डबडबा आईं।

शीला ने पैंतीस वर्ष के वैवाहिक जीवन में पहली बार अपने पति की आंखों में आंसू देखे तो उसका कलेजा मुंह को आने लगा। यह पहला अवसर नहीं था जब जवान बेटे ने उनके दिल को ठेस पहुंचाई थी, पर हर बार बेटे की इस तरह की हरकतों को उसकी नादानी कहकर टाल दिया करते थे।

एकाएक उनकी तबियत बिगड़ने लगी। ड्यूटी रूम की ओर दौड़ती हुई नर्सें... ब्लड प्रेशर नापता डाक्टर... इंजेक्शन तैयार करती स्टाफ नर्स...

उनकी सांस झटके ले-लेकर चल रही थी...

डॉक्टर ने निराशा से सिर हिलाया और चादर से उनका मुंह ढक दिया। वह हैरान था, उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि जिस आदमी ने अपनी बहादुरी और जीने की प्रबल इच्छा के बल पर सिर पर मंडराती मौत को दूर भगा दिया था, उसी ने एकाएक दूर जाती मौत के आगे घुटने क्यों टेक दिए थे?!

Advertisement
×