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पुस्तक समीक्षा

कटु यथार्थ के स्वाभाविक चित्रण

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रतन चंद ‘रत्नेश’

पुस्तक : कुछ यूं हुआ उस रात (कहानी-संग्रह) लेखिका : प्रगति गुप्ता प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 134 मूल्य : रु. 250.

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वरिष्ठ कथाकार और समाज-सेविका प्रगति गुप्ता की कहानियों में मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के साथ जीवन के कटु यथार्थ के स्वाभाविक चित्रण परिलक्षित होते हैं।

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समीक्ष्य कृति ‘कुछ यूं हुआ उस रात’ की तेरह कहानियों में आज के बदलते सामाजिक परिवेश की विडंबनाएं व्याप्त हैं। पहली कहानी ‘अधूरी समाप्ति’ कोरोना की दूसरी लहर की भयावहता को दर्शाती है जिसमें पीड़ित व्यक्तियों के मसीहा बने एक युवक की उसी बीमारी की चपेट में आने के बाद का घटनाक्रम का रोमांस और रोमांच है।

इन कहानियों में युवामन की जगह-जगह थाह ली गई है। ‘कुछ यूं हुआ उस रात’ आज की उस युवा पीढ़ी की व्यथा उजागर करती है जिनके माता-पिता के आपसी संबंधों में खटास रहती है। एक सच्चे साथी की तरह पुस्तकों के प्रति प्रेम ‘कोई तो वजह होगी’ और ‘खामोश हमसफर’ में उभरे हैं। इनके अलावा बुजुर्गों पर केंद्रित कहानियां हृदयग्राही हैं जो आज के स्वार्थपरक और उच्छृंखल युवा वर्ग की विकृत मानसिकता की पोल खोलती हैं। बीमार और बूढ़ी मां की देखभाल में कोताही बरतती दो बहनों का दिखावटी लगाव सिर्फ इसलिए है कि बाद में उन्हें धन-संपत्ति मिल जाएगी (चूक तो हुई थी)। ‘भूलने में सुख मिले तो भूल जाना’ संग्रह की सशक्त कहानियों में से एक है जिसमें गलत कार्यों में लिप्त युवकों द्वारा एक अवकाशप्राप्त अध्यापक का अपमानित होना शिक्षा के अवमूल्यन और अध्यापक की पीड़ा की ओर इशारा करता है।

बाबाओं का मोहजाल ‘टूटते मोह’ और हाई प्रोफाइल सोसायटी की महिलाओं का सच ‘पटाक्षेप’ में उजागर हुआ है। सभी कहानियां विभिन्न मुद्दों पर बदलती सामाजिक परिस्थितियों पर सोचने को विवश करती हैं।

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