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विचारों की अस्थियां

कविता
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कब तलक यूं रक्त-रंजित

ये सुनहरे ख्वाब मेरे?

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उंगलियां थामे, संग यूं

तकलीफ में चलते रहेंगे।

दर्द की पिछली गली में छोड़ आया,

सिसकते, रोते, बिलखते,

पंख वाले ख्वाब मेरे।

उस शहर में रुक गए,

अब आंख की पलकों से,

मुंडेरों से लटके,

छूट जाना चाहते हैं।

अब विचारों से इतर,

शांत होना चाहते हैं,

गोधूलि के पार,

धरती के किनारों संग,

मिल जाना चाहते हैं।

शून्य से, सब मिटा कर,

बस अकेले, पंख लेकर,

इस कलम को तोड़ कर,

दिल का सारा लहू सूखा कर,

इन किताबों को गंगा में बहा कर,

नाव जैसा बह रहा हूँ,

रक्त-रंजित, ख्वाब मेरे।

तैरते हैं, डूब रहे हैं,

ख्वाब सारे, शब्द सारे,

इन विचारों की अस्थियां

मैं चुन रहा हूं।

इन विचारों की अस्थियां

मैं चुन रहा हूं।

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