बेटी का जन्म
(1)
एक मशाल वाली घर में और हुई,
चंचल पानी-सी धार।
और उठे हुए हाथों वाली,
और हुई बिजली-सी इंसान,
चौकस आंखों वाली और हुई—
एक मशाल वाली घर में और हुई।
माता रही विचार —
रात हराने वाली और हुई।
दादा रहे निहार —
बुढ़ापे की इक लाठी और हुई।
एक मशाल वाली घर में और हुई।
जनता रही पुकार —
दुनिया बदलने वाली और हुई।
सुन ले री अंधियार,
कयामत ढाने वाली और हुई।
एक मशाल वाली घर में और हुई।
(स्व. केदारनाथ अग्रवाल की कविता से प्रेरित)
(2)
तमाम कोशिशें नाकाम हुईं,
हम आए —
आए हैं तो नीर-भरी बदली बन कर।
छाए संबंधों का ताप मिटेगा,
खेती लहकेगी।
आगंतुक जैसे चाहे
अपनी जगह बनाए।
मांगे से अधिकार नहीं देता है कोई,
यह तो है—जो काटे सो खाए।
आग बुवोगे, तो भी हम भाईचारा काटेंगे।
दिन बदलेंगे —
नाकाम न हो जो हम आस लगाए।
रात हमारी, दिन उन सबका—
ऐसा कैसे होगा?
आधा-आधा बांटेंगे,उनको भाए या न भाए।
गीत एक है—
तुम तो पढ़ लो,
हम छू कर रह जाएं।
शोषण टूटेगा —
जहां हम एक कंठ से गायें।
मेघदूत
बादल राजा, बादल राजा,
थोड़ा-सा नीचे आ जा।
मेरी बेटी रहती दूर,
बिल्कुल जैसे गेंदे का फूल।
उसको ये चिट्ठी दे देना,
देकर उसका मिट्ठू ले लेना।
कभी खेलाना, कभी झुलाना,
गरज-गरज कर उसे न डराना।
लौट यहां जब आ जाना,
उसका हाल मुझे बतलाना।
यह सब करके मन बदलेगा,
काला था — बदलेगा तो
हो जाएगा तू मक्खन-ताज़ा।
बादल राजा, बादल राजा,
थोड़ा-सा नीचे आ जा।