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छोटे व्यंग्यों की बड़ी चोट

पुस्तक : फर्जी की जय बोल व्यंग्यकार : अशोक गौतम प्रकाशक : साहित्य संस्थान, गाजियाबाद पृष्ठ : 145 मूल्य : रु. 350. गोविंद शर्मा प्रस्तुत व्यंग्य संग्रह ‘फर्जी की जय बोल’ में व्यंग्यकार अशोक गौतम ने 41 व्यंग्य आलेख प्रस्तुत...
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पुस्तक : फर्जी की जय बोल व्यंग्यकार : अशोक गौतम प्रकाशक : साहित्य संस्थान, गाजियाबाद पृष्ठ : 145 मूल्य : रु. 350.

गोविंद शर्मा

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प्रस्तुत व्यंग्य संग्रह ‘फर्जी की जय बोल’ में व्यंग्यकार अशोक गौतम ने 41 व्यंग्य आलेख प्रस्तुत किए हैं, जो फर्जी नहीं हैं। इस संग्रह में राजनीति और साहित्य पर तीखे व्यंग्य किए गए हैं, जहां राजनीति वाले व्यंग्यकारों को उनकी हरकतों के कारण निशाना बनाया गया है। संग्रह में ‘तीर बॉस’ नामक जीव पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जबकि साहित्य और साहित्यकारों पर भी व्यंग्य किए गए हैं। आलेखों में ‘हर सर्विस साहब का काज है’, ‘वर्मा साहब गए पानी में’, ‘कुशल साहब गुसल लाजवाब’, ‘वर्मा साहब का कन्फेशन’, ‘हैप्पी बर्थडे टू बॉस के ऑगी जी’, और ‘जाके प्रिय न बॉस बीवेही’ जैसे शीर्षक शामिल हैं, जिनमें बॉसों की महिमा और व्यंग्यात्मक आलोचना की गई है।

संग्रह में समाज, सरकार, सरकारी नौकरियों, और प्राइवेट कामकाजी जीवन पर भी कटाक्ष किया गया है। व्यंग्यकार ने दांपत्य जीवन को भी निशाना बनाया है, जैसे कि ‘मेरी मौलिक आत्मकथा के दंश’, ‘वैलेंटाइन डे और मेरा वैलेंटाइन’, ‘वाइफ, कामवाली और मैं’, और ‘एक खुशनसीब दिवंगत पति का खुशीनामा’ जैसी कहानियों में।

‘नरकपुर में स्वर्गलोक का शिलान्यास’ राजनीतिक दुनिया की व्यंग्यात्मक छवि प्रस्तुत करता है। ‘नो गुस्सा बस रुपये का जूता’ में रिश्वतखोरी की कड़ी आलोचना की गई है।

संग्रह में व्यंग्य आकार में छोटे हैं लेकिन चोट में बड़े हैं, और यह समाज की विसंगतियों को सशक्त ढंग से प्रस्तुत करता है।

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