कीर्ति शर्मा
विशेष के पापा पुलिस में बड़े अधिकारी थे। उसकी मम्मी अध्यापिका थी। उसके दादा का कपड़े का बड़ा कारोबार था, जो अब दादा के साथ उसके चाचा संभालते थे। विशेष शहर के एक बड़े स्कूल में आठवीं कक्षा में पढ़ता था। विशेष को सब प्यार करते थे लेकिन विशेष का अपने नानू से कुछ ज्यादा ही प्यार था। उसके नानू विशेष को नई-नई कहानियां सुनाते थे। उसे बहादुर और ईमानदार बनने की प्रेरणा देते थे। परन्तु विशेष के मम्मी और पापा को छोड़कर कोई भी उसके नानू, नानी या मामू को पसंद नहीं करते थे। वे जब-तब उनकी सादगी का मजाक उड़ाते रहते थे। विशेष को यह अच्छा नहीं लगता था। विशेष के नानू साधारण परिवार से थे।
आज विशेष का जन्मदिन था। घर में पार्टी की तैयारी पूरी कर ली गई थी। विशेष के पापा और चाचा भाग-भाग कर काम कर रहे थे। बाजार से सामान लाया जा रहा था। विशेष की मम्मी उसकी चाची और बुआ के साथ रसोई में मोर्चा संभाले हुए थी। पकवान और मिठाइयां बनाई जा रही थीं।
शाम को घर में खूब रौनक हो गई थी। उसके दस-बारह दोस्तों के साथ ही कुछ नजदीकी रिश्तेदार भी आए हुए थे। म्यूजिक सिस्टम पर बर्थ-डे सॉन्ग और अन्य फिल्मी गाने बज रहे थे।
निर्धारित समय पर विशेष ने केक काटा। सब मेहमानों ने तालियां बजाते हुए ‘हैप्पी-बर्थ-डे टू-यू’ की लयबद्ध ध्वनियों के बीच विशेष का स्वागत किया। इसके बाद सबने उसे उपहार भेंट किए। केक काटने की रस्म के बाद कुछ देर तक बच्चों का नाच-गाना चलता रहा। बीच-बीच में सब कॉफी-पकौड़े, मिठाई और अन्य स्नैक्स खाते रहे। रात को भोजन के बाद खुश-खुश माहौल में विशेष के दोस्त और सब रिश्तेदार विदा हुए। परिवार वाले भी थक गए थे। इसलिए सब सो गए। अगले दिन सुबह उठते ही सबने जन्मदिन पर मिले उपहार इकट्ठे किए और उन्हें खोलने लगे। किसी ने विशेष के लिए नया सूट दिया था तो किसी ने जैकेट। कोई साइकिल लाया था तो कोई टेडी बीयर। किसी ने खिलौनों का सेट भेंट किया था तो किसी ने वीडियो गेम।
इन उपहारों को देखते हुए अचानक विशेष की बुआ ने ताना-सा मारा, ‘अरे! इन उपहारों में विशेष के नानू का कोई उपहार नजर नहीं आ रहा! दिया भी है या नहीं?’
बुआ की इस व्यंग्यात्मक टिप्पणी पर सब खिलखिला पड़े। परन्तु विशेष की मम्मी का चेहरा उतर गया। चाचा ने भी कुछ ऐसा ही कहा। इस पर सभी हंसने लगे।
विशेष की मम्मी का मन उदास हो गया। वे वहां से उठने का सोच ही रही थीं कि अचानक विशेष के पापा बोल पड़े, ‘अरे भाई, सब अपनी ही बोलेंगे या विशेष से भी पूछेंगे कि उसे इनमें से सबसे अच्छा उपहार कौनसा लगा है? उसकी पसन्द का भी तो पता चलना चाहिए कि नहीं?’ सबकी नजर विशेष की तरफ घूम गई, ‘हां…हां… विशेष की पसंद भी तो पता चले।’
जब दादाजी ने भी पूछा, ‘हां विशेष, तुम बताओ! तुम्हें सबसे अच्छा उपहार कौनसा लगा है?’ तो विशेष ने कहा, ‘सब ही अच्छे हैं, पर…’
‘दादा जी! उपहार किसी का भी दिया हुआ हो, वह छोटा या बड़ा नहीं होता। उसकी कीमत से भी वह बड़ा नहीं माना जाना चाहिए। उसकी उपयोगिता से ही उपहार का पता चलता है कि वह कितना काम का है।’
‘यह!’ कहते हुए विशेष ने एक लिफाफा हवा में लहराया। सबने आश्चर्य से उसे देखा, ‘क्या है इसमें? किसने दिया है?’
‘इसमें एक कविता है, जो यह संदेश देती है कि जीवन में कैसी भी परिस्थितियां आएं, व्यक्ति को कभी घबराना नहीं चाहिए। सदैव सच्चाई और ईमानदारी के रास्ते पर साहस एवं निडरता से चलना चाहिए।’‘सचमुच! यह तो वाकई सबसे अच्छा उपहार है।’ विशेष के पापा बोले, ‘परन्तु तुम्हें इतना अच्छा उपहार दिया किसने है? तुम्हारे स्कूल के एक टीचर भी आए थे। वे दे गए हैं क्या?’
‘टीचर ने नहीं, नानू ने!’ कहते हुए विशेष खुशी से उस कागज पर लिखी कविता को पढ़ने लगा। सब हैरानी से विशेष को कविता पढ़ते हुए देख रहे थे, और देख रहे थे- उसके चेहरे का उल्लास, उत्साह और एक आत्मविश्वास! सचमुच उसे सबसे अच्छा उपहार मिल चुका था।