सारे सुन्दर
सुबह जाग खुल गई,
तो सोचा—
थोड़ा प्रभु का नाम लेकर
पढ़ने लग जाऊं!
विनोद कुमार शुक्ल की पुस्तक
‘एक पूर्व में बहुत पूर्व’
की कविताएं पढ़ता रहा।
जीवन को..., संसार को,
लोगों को, घरों को
प्यार करने वाले कवि को
पढ़ते पढ़ते
दूसरी पुस्तक—
केदारनाथ की प्रतिनिधि कविताएं
पढ़ने का मन हुआ।
पुस्तक खोलता हूं, तो
उसमें अपनी पत्नी की
बहुत सुन्दर और प्यारी
फोटो मिल जाती है—
पहले से रखी हुई।
अब मुझे पूरी पुस्तक
और सारे शब्द ही
सुन्दर दिखने लगते हैं।
पत्नी सुन्दर है,
पुस्तक सुन्दर है,
शब्द सुन्दर हैं,
या सारे ही सुन्दर हैं?
उन सभी सुंदरताओं में
मैं भी अपने-आप को
सुंदर महसूस करने
लगता हूं!
तितली की शोभा यात्रा !
तितली कभी-कभी
सुनती है टी.वी. पर
अपने पंखों के रंगों की
प्रशंसा—
अपने गुणों की प्रशंसा।
कि कैसे-कैसे लेकर
जाती है पराग-कण
एक जगह से दूसरी जगह,
और रखती है प्रकृति को
हरा भरा।
परन्तु...
उस को इस बात का गिला है—
कि राज-पथ पर
क्यों नहीं
निकाली जाती
उस की शोभा यात्रा—
जैसे निकाली जाती है
तोपों की!
टैंकों की!!