रोशनियों के बाद
महानगर की सड़कें
लम्बी/उदास,
जहां चलती लोगों की भीड़
निरुद्देश्य,
वहां आदमी साथ चलते हुए भी
अकेला।
मेरे से पहले भी
यहां रखे होंगे किसी ने पांव,
लेकिन नहीं मौजूद,
किसी के पांव के निशान,
कंक्रीट का जंगल,
सब कुछ समो लेता भीतर।
चारों तक अंधेरा-ही-अंधेरा,
बावजूद रोशनियों के।
कंक्रीट की यूं तो
आकाश छूती अट्टालिकाएं,
लेकिन न कोई चौखट, न दहलीज,
न दीवारों पर अल्पना पुते चित्र,
जो कहें हर आने वाले को
राम-राम/ सतश्री अकाल,
सलाम वालेकुम,
या फिर दे
शुभकामना ही।
यहां नहीं करता
कोई किसी का इंतजार,
सब जल्दी में हैं,
आगे वाले को रोंद कर
उससे आगे जाने की
फिराक में मुब्तिला सब।
मातमपुर्सी में भी,
शामिल न होने के लिए
उपयुक्त बहाने की
तलाश में हैं सब!
सबके सब शातिर,
यों दिखते सभी भले मानुष,
आंखों में करुणा और होंठों पर
मुस्कान का पोस्टर चिपकाए हुए।
महानगर की सड़कें,
लम्बी/उदास,
जहां चलती लोगों की भीड़
निरुद्देश्य,
जहां आदमी साथ चलते हुए भी
अकेला।
