मैं इसके बाद
जिंदगी का पता पूछता हूं।
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अभी पिछले दिनों ही
प्यार से संवारी थी।
कभी वो खिलखिला के हंसती है,
कभी रोती है तो पूरे दिन भर।
कल ही उसकी नज़र उतारी थी।
मेरा दावा है, वो चाहती है मुझे,
मुझसे वो बात बस नहीं करती।
मेरे तकिये के किसी कोने में,
उसने पायल कहीं उतारी थी।
फिर उसके बाद मुझे और
कुछ कमी न रही।
है उसका साथ ही बहुत मुझको,
ज़िन्दगी पूछ तो लेती मुझसे,
थोड़ी सांसें अभी उधारी थी।
ऐ खुदा! तूने जिंदगी देकर
बड़ा अहसान तो किया,
लेकिन मेरी माँ ने मेरी
पलकों पे नमी रखी है।
मेरे माथे पे ये एक काला टीका
मेरी माँ की ही चित्रकारी है।
चला गया वो
पिछले बरस का भ्रम सारा,
छट गई बदली, धूप निकली है।
मेरे मालिक, ये ज़िन्दगी मेरी
अब तो तेरी ही जिम्मेदारी है।
मैं इसके बाद
जिंदगी का पता पूछता हूं।
अभी पिछले दिनों ही
प्यार से संवारी थी।
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