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साहित्य इतिहास की उपलब्धि और सीमाएं

पुस्तक समीक्षा

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नीरोत्तमा शर्मा

हिन्दी साहित्य में इतिहास लेखन परम्परा सदियों पुरानी है परन्तु आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इसे व्यवस्थित, प्रामाणिक व वैज्ञानिक स्थापना दी। सुखद विषय यह है कि साहित्येतिहास लेखन आज भी जारी है। इसी परवर्ती इतिहास लेखन को आधार बना कर डॉ. ज्योति शर्मा ने ‘आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के परवर्ती साहित्येतिहास ग्रन्थ सीमाएं व उपलब्धियां (1930-1986)’ नामक शोध ग्रंथ की रचना की है।

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‘साहित्य के इतिहास के अभाव में कोई भी रचनाकार, पाठक व आलोचक अपने दायित्व का निर्वाह नहीं कर सकता’ -इस अवधारणा को ध्यान में रखकर लिखी गई यह पुस्तक अपने आप में उपयोगी कृति है। पुस्तक को सात अध्यायों में बांटा गया है। प्रथम अध्याय में लेखिका ने इतिहास लेखन परम्परा पर प्रकाश डालते हुए उन नियामक बिन्दुओं का उल्लेख किया है जिनके मूल तत्व पर साहित्येतिहास ग्रन्थ की उपलब्धि व सीमा सिद्ध की गई है।

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दूसरे अध्याय में सैद्धान्तिक परिप्रेक्ष्य में इतिहास सम्बन्धी भारतीय व पाश्चात्य दृष्टिकोणों की चर्चा की गई है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के आधार स्तम्भ ग्रन्थ ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ का विस्तृत विवेचन तीसरे अध्याय में उपलब्ध है जिसकी विशेषता यह है कि लेखिका ने ग्रन्थ की शक्तियों के समानान्तर उसकी सीमाओं का भी विस्तार से उल्लेख किया है।

चतुर्थ अध्याय में शुक्ल के परवर्ती साहित्येतिहास का सामान्य परिचय करवाया गया है। पांचवां अध्याय इस ग्रन्थ का सबसे बड़ा अध्याय है जिसमें लेखिका ने 1930 से लेकर 1986 तक के सभी इतिहास ग्रन्थों का उनकी विशेषताओं और उपलब्धियों के आधार पर शोधपरक विश्लेषण प्रस्तुत किया है। इनमें वर्णित सामग्री, काल विभाजन व तथ्यों का बड़ी सूक्षमता से मूल्यांकन किया गया है। जिससे यह ग्रन्थ पाठक को नवीन इतिहास दृष्टि प्रदान करने में सक्षम है। अध्याय छह में उन ग्रन्थों का उल्लेख है जो साहित्येतिहास-लेखन परम्परा को तो आगे बढ़ाते हैं किन्तु कोई नवीन अवधारणा प्रस्तुत करने व नवीन इतिहास बोध देने में सफल नहीं हो सके हैं।

सातवां अध्याय निष्कर्षमूलक है जिसमें अध्ययन का सार, उपलब्धियां तथा आगामी शोध संकेत क्रमिक रूप में वर्णित हैं। पुस्तक में दी गई सहायक ग्रन्थ सूची इस पुस्तक को वैधता प्रदान करती है। यह ग्रन्थ लेखिका के कड़े परिश्रम व शोध का परिणाम है। नवीन शोधार्थियों के लिए यह ग्रन्थ किसी वरदान से कम नहीं है। सामान्य पाठक जन व शोधार्थियों को न केवल शुक्ल द्वारा लिखे गए इतिहास को विस्तृत परिप्रेक्ष्य में समझने का मौका मिलेगा बल्कि उनके परवर्ती इतिहासकारों की उपलब्धियों व सीमाओं का अवलोकन करने का दृष्टिकोण भी प्राप्त होगा।

पुस्तक : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के परवर्ती साहित्येतिहास ग्रंथ सीमाएं व उपलब्धियां लेखिका : डॉ. ज्योति शर्मा प्रकाशक : सप्तऋषि पब्लिकेशन, चंडीगढ़ पृष्ठ : 280 मूल्य : रु.400.

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