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परमसत्ता की स्वीकार्यता

पुस्तकें मिलीं

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मनुष्य जीवंतकाल तक भोग-विलास और मोह-माया में लीन रहता है। लेकिन देर से उसे अहसास होता है कि मनुष्य का जीवन-मरण तो प्रभु के हाथ में है। उसके बीच में जो घटनाक्रम होता है, उसे लेकर अहंकार व भ्रम क्यों? पद, प्रतिष्ठा, धन-संपदा जैसी बाहरी चीजें वास्तव में हमारी नहीं होतीं। कुछ ऐसे ही जीवन के गहरे अहसासों को डॉ. अंजु दुआ जैमिनी ने अपने आध्यात्मिक काव्य संकलन ‘परमसत्ता में लीन’ में शब्दों में पिरोया है। आध्यात्मिक प्रवृत्ति के पाठकों के लिए संकलन उपयोगी है।

पुस्तक : परमसत्ता में लीन रचनाकार : डॉ. अंजु दुआ जैमिनी प्रकाशक : पेसिफिक बुक्स इन्टरनेशनल, नई दिल्ली पृष्ठ : 88 मूल्य : रु. :325

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जंगल जोड़ने वाला पुल

चर्चित बाल साहित्यकार डॉ. घमंडीलाल अग्रवाल लगातार अपनी पुस्तकों की संख्या में वृद्धि कर रहे हैं। पंद्रह पृष्ठों की समीक्षा कृति ‘जानवरों ने पुल बनाया’ के अंतिम पृष्ठ पर लिखा गया है कि उनकी 164 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। पुस्तक का शीर्षक यह सवाल उठता है कि तमाम बाधाओं को पार करने की प्राकृतिक क्षमता रखने वाले जानवरों को आखिर पुल की जरूरत क्यों पड़ती है। दरअसल, पुल नंदनवन के जानवरों ने चंपकवन के साथियों से एकता-मेलजोल के लिये बनाया।

पुस्तक : जानवरों ने पुल बनाया रचनाकार : डॉ. घमंडीलाल अग्रवाल प्रकाशक : सूर्य भारती प्रकाशन, दिल्ली पृष्ठ : 15 मूल्य : रु. 90.

खोने-पाने की कसक

जीवन के उत्तरार्द्ध में एक ऐसा समय जरूर आता है जब मनुष्य मंथन करता है—‘क्या खोया क्या पाया?’ इसी शीर्षक वाली समीक्ष्य कृति में अनिल कौशिक ने समाज, परिवेश व संस्कृति और देश से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर गहरा मंथन किया है। उनके स्वभाव के अनुरूप कविताएं कोमलकांत स्वर में सहज अभिव्यक्ति लिए हुए हैं। वे सजग व संवेदनशील नागरिक के रूप में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर अपने विचारों को अभिव्यक्त करते रहते हैं। समाज के प्रति उनकी गहरी संवेदनशीलता उनकी रचनाओं में मुखरित होती है।

पुस्तक : क्या खोया, क्या पाया? रचनाकार : अनिल कौशिक प्रकाशक : कुरुक्षेत्र प्रेस, कुरुक्षेत्र पृष्ठ : 108 मूल्य : रु. 200.

शून्यता में दिव्यता की तलाश

‘क्या लिखूं-क्या रहने दूं’ कृति के बाद रचनाकार कुसुम यादव को ‘शून्यता से दिव्यता’ रचने का विचार आया। समीक्ष्य कृति लघुकविता संग्रह है, जिसमें 101 लघुकविताएं संकलित हैं। इन कविताओं के विषय हमारे आसपास की घटनाओं से जुड़े हैं और मन में समाज को सुंदर बनाने की उत्कट अभिलाषा है। समाज के दुख-दर्द को उन्होंने गहराई से महसूस किया है। रचनाएं मुक्त छंद में हैं और करीब दस पंक्तियों की हैं। विषयों में विविधता पुस्तक को पठनीय बनाती है। रचनाओं की भाषा सरल है।

पुस्तक : शून्यता से दिव्यता रचनाकार : कुसुम यादव प्रकाशक : आनन्द कला मंच, भिवानी पृष्ठ : 120 मूल्य : रु. 300.

हंसती-मुस्कराती रहे जिंदगी

आज का आदमी बिना किसी वजह के परेशान नजर आता है। दुनियाभर की सुख-सुविधाएं जुटाने के प्रलोभन में वह जीवन के वास्तविक सुख से वंचित होता जा रहा है। ऐसे समय में हास्य हमारे जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है — यह न केवल तनाव कम करता है, बल्कि हमें मानसिक रूप से स्वस्थ रखने में भी सहायक होता है। इस तथ्य को महसूस करके पेशे से इंजीनियर रहे और साहित्य अनुरागी इं. एसके जैन ‘तन्हा’ ने करीब 1400 चुटकलों का संग्रह ‘पटाखे : चुटकलों का महासंग्रह’ के रूप में पाठकों के सामने प्रस्तुत किया है। यह उनकी सातवीं पुस्तक जन-साधारण को समर्पित ऋषिकर्म जैसी है।

पुस्तक : पटाखे-चुटकलों का महासंग्रह रचनाकार : इं. एसके जैन ‘तन्हा’ प्रकाशक : सप्तऋषि पब्लिकेशन, चंडीगढ़ पृष्ठ : 365 मूल्य : रु. 650.

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