अशोक मलिक
भारत की आबादी इस सदी का अंत होते-होते घटकर एक अरब के करीब रह जाएगी, यानी आज की जनसंख्या से 30-35 करोड़ कम हो जाएगी। यह अनुमान प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल लैंसेट में छपी एक ताज़ा रिपोर्ट में लगाया गया है। इस अनुमान के अनुसार इस कमी के बावजूद भारत दुनिया में सबसे ज़्यादा आबादी वाला देश बना रहेगा। अनुमान के अनुसार दुनिया की आबादी भी सदी के आखिर में पहले के अनुमान से दो अरब कम रहेगी।
रिपोर्ट के अनुसार अभी दुनिया की आबादी करीब 7.8 अरब है जो साल 2100 में करीब 8.8 अरब हो जाएगी। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2019 में प्रकाशित रिपोर्ट में साल 2100 तक दुनिया की आबादी करीब 10.9 अरब होने का अनुमान लगाया गया था। रिपोर्ट के अनुसार इस सदी के अंत तक विश्व में सर्वाधिक आबादी वाले पांच देश ये होंगे—भारत, नाइजीरिया, चीन, अमेरिका और पाकिस्तान।
समीक्षाधीन पुस्तक के विद्वान लेखक का मानना है कि भारत की जनसंख्या संबंधी मूलभूत मुद्दे आज़ादी के बाद से ज्यादा नहीं बदले हैं। हालांकि, आम आदमी की सोच में बदलाव के कई संकेत समय-समय पर सामने आते रहे हैं। शहरों में छोटे परिवार और गांवों में परिवारों के आकार में कमी, कम उम्र में विवाह होने के चलन में कमी, संतानों की पढ़ाई और पालन-पोषण को लेकर गांवों में भी सचेतता बढ़ती दिखाई दे रही है।
परिवार नियोजन की जरूरत भारत में आज़ादी के बाद ज्यादा खुलकर सामने आई, इस विषय को लेकर राष्ट्रीय नीतियों पर दो प्रभाव विशेष रूप से उल्लेखनीय रहे। महात्मा गांधी परिवार का आकार छोटा रखने के लिए गर्भ निरोध के कृत्रिम साधनों के विरोधी थे, उनका मानना था कि विवाहित दंपति ब्रह्मचर्य को अपना कर परिवार का आकार छोटा रखें, यही उचित है।
देश की आज़ादी के कई एक दशक बाद तक भी सरकारें इसी सोच के अनुरूप चलती रही। अंतर्राष्ट्रीय आग्रह के चलते देश में परिवार नियोजन को राष्ट्रीय नीतियों का हिस्सा बनाया गया। इस आग्रह के पीछे विकासशील देशों की आबादी बेतहाशा बढ़ने से विश्व-शांति को खतरे की आशंका सहित कई कारण देखे जा सकते हैं। 1960 से 1976 तक की कालावधि भारत में परिवार नियोजन का युग कहा जा सकता है।
वर्ष 1975 से 1977 के बीच आपातकाल के 19 महीनों के दौरान देश की राजधानी दिल्ली और अनेक राज्यों में जब्री नसबंदी का सरकारी अभियान चलाया गया। इसके बाद लोकसभा चुनाव में श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार की बुरी तरह हार हुई। इस अभियान को लेकर व्यापक जन-आक्रोश भूमिका संबंधी निष्कर्षों ने देश के राजनीतिक दलों को जनसंख्या नियंत्रण की बात करना तो दूर, सोचने से भी परहेज़ का आसानी से नहीं भूलने वाला सबक सिखाया।
भविष्य में जनसंख्या वृद्धि समस्या नहीं बने, इसके लिए परिवार केंद्रित नीतियां अपनाने की लेखक की सिफारिश पहले की नीतियों की विफलता के कारण की तरफ इशारा करती हैं।
मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी गई इस पुस्तक की भाषा पूरी तरह मशीनी लगती है। भाषा स्वाभाविक है, प्रवाह में देखे जाने वाले मुहावरे नदारद हैं।
पुस्तक : भारत में जनसंख्या संबंधी मुद्दे : बदलती प्रवृत्तियां, नीतियां और कार्यक्रम लेखक : कृष्णमूर्ति श्रीनिवासन प्रकाशक : सेज/भाषा, नयी दिल्ली पृष्ठ : 308 मूल्य : रु. 645.