पथरीली राहों में व्यंग्य यात्रा
प्रेम जनमेजय के ऋषिकर्म से फलित व्यंग्य रचनाओं की त्रैमासिकी प्रतिनिधि पत्रिका ‘व्यंग्य यात्रा’ का तमाम चुनौतियों के बावजूद निरंतर प्रकाशित होना सुखद ही है। बढ़ती लागत व विज्ञापन संकट के बीच निरंतर पत्रिका प्रकाशन दुष्कर कार्य ही है। रचनाओं का संकलन, संपादन और पाठकों तक डाक से पत्रिका भेजने जैसे सारे काम संपादक को ही करने पड़ते हैं। समीक्ष्य अंक-21 में स्थायी स्तंभों के साथ 37 मौलिक व्यंग्य रचनाएं संकलित हैं। इसके अलावा पाथेय, चिंतन, कबीरी धार की कविता, त्रिकोणीय, संत चौक स्तंभों के अंतर्गत पठनीय रचनाएं शामिल की गई हैं। संपादकीय आरंभ में जनमेजय मौजूदा संक्रमणकालीन दौर में व्यंग्य के दायित्वों का बोध कराते हैं। सुखद है कि तेजी से डिजिटल होती दुनिया में दूरदृष्टि का परिचय देते हुए प्रेम जनमेजय ने ‘व्यंग्य यात्रा’ का ‘यू-ट्यूब मासिकी’ के रूप में जो प्रयोग शुरू किया है, उसे व्यंग्य प्रेमियों का सकारात्मक प्रतिसाद मिला है।
पत्रिका : व्यंग्य यात्रा संपादक : प्रेम जनमेजय प्रकाशक : 73 साक्षर अपार्टमेंट्स, पश्चिम विहार दिल्ली पृष्ठ : 148 मूल्य : रु. 100 (वार्षिक)
साहित्य की गगरी में कथा अमृत
पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा की प्रेरणा और यशस्वी प्रकाशक श्यामसुंदर के पुरुषार्थ से पं. विद्यानिवास मिश्र के संपादन में 1995 में शुरू हुई साहित्यिक पत्रिका ‘साहित्य अमृत’ निरंतर साहित्य के संवर्द्धन में लगी है। समीक्ष्य अंक विशेषांकों की शृंखला में कहानी विशेषांक है, जिसका विशेष आकर्षण है युवा कहानी प्रतियोगिता के परिणाम। संयोजक प्रभात कुमार के अनुसार इस प्रतियोगिता में देशभर के 400 युवा कहानीकारों ने भाग लिया। प्रतिस्मृति में विश्वंभरनाथ कौशिक की ताई, विजयदान देथा की भरम, मृदुला सिन्हा की सहस्र पूतों वाली, हिमांशु जोशी की दाह, कमलेश्वर की इंसान और भगवान, मालती जोशी की इतिश्री, श्रीलाल शुक्ल की चरित्रवान बाबू की कथा, गिरिराज किशोर की भयाक्रांत आदि हृदयस्पर्शी रचनाएं संकलित हैं। इसके अलावा अन्य स्थायी स्तंभों के साथ युवा हिंदी कहानी प्रतियोगिता के परिणाम घोषित किए गए हैं। साथ ही विजेता प्रतिभागियों की कहानियां भी समीक्ष्य अंक में शामिल की गई हैं।
पत्रिका : साहित्य अमृत संपादक : लक्ष्मी शंकर वाजपेयी संयुक्त संपादक : हेमंत कुकरेती प्रकाशक : 4/19 आसफ अली रोड, नयी दिल्ली पृष्ठ : 296 मूल्य : रु. 150.
नगरीय परिवेश के अहसासों का मंथन
इंसान अपने सपनों के लिए भले ही गांव-घर छोड़कर महानगरों की ओर निकलता है, लेकिन अपनी मिट्टी से जुड़े अहसासों से कभी दूर नहीं होता। महानगरों में चाहे हम तरक्की और समृद्धि हासिल कर लें, लेकिन गांव और बचपन की यादें उद्वेलित जरूर करती हैं। मंथन के संपादक महेश अग्रवाल हर साल साहित्यिक वार्षिकी निकालते हैं। इस बार का अंक नगर-परिवेश पर केंद्रित है, जिसका संपादन वरिष्ठ पत्रकार विमल मिश्र ने किया है। अंक में देश के चुनिंदा शहरों — मसलन मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु, इलाहाबाद, चंडीगढ़, रांची, बड़ौदा, बनारस, जम्मू, रायपुर, जयपुर, पटना, गुवाहाटी आदि — के जीवन की पड़ताल की गई है। देश के जाने-माने साहित्यकारों, पत्रकारों, लेखकों व स्तंभकारों ने महानगरों के इतिहास और संस्कृति का आईना दिखाने के साथ-साथ जीवन के संघर्षों से भी रूबरू कराया है। शहरी जीवन पर केंद्रित मंथन के इस अंक में लोगों के सपनों, संघर्षों और सफलताओं का सच दर्शाया गया है।
पत्रिका : मंथन साहित्य वार्षिकी संपादक : महेश अग्रवाल अतिथि संपादक : विमल मिश्र प्रकाशक : महेश अग्रवाल, अग्रसेन टावर, कोलवाड, ठाणे पृष्ठ : 108 मूल्य : रु. 80.
सृजन की आकांक्षाओं का मुक्तांचल
शोध, समीक्षण, सृजन एवं संचार के लिए प्रतिबद्ध ‘मुक्तांचल’ का समीक्ष्य अंक हिंदी कहानी की पठनीयता के विमर्श पर केंद्रित है। इस अकादमी पत्रिका का लक्ष्य सृजन की शुचिता के साथ ही बाज़ार के भयावह आयामों के प्रति सचेत करना रहा है, साथ ही शिक्षा और साहित्य को भ्रम की मरीचिका से मुक्त कराने का संकल्प भी। बाज़ार के वशीभूत साहित्यकारों के सच से भी रूबरू कराने का प्रयास किया गया है। पत्रिका का उद्घोष है कि ‘कृति हमेशा कृतिकार से अधिक महत्वपूर्ण होती है’। कुल मिलाकर यह अंक पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर गुणवत्ता के सृजन पर बल देता है। अंक में संस्तुति आलेख, अनुशीलन, विमर्श, शोधार्थी की कलम से, अन्तःपाठ, समीक्षा, कहानी, संस्मृति, संस्मरण, नया कदम, नई पहल, कविता, साक्षात्कार, पुस्तकायन, अभिमत आदि स्थायी स्तंभों में पठनीय रचनाएं संकलित हैं।
पत्रिका : मुक्तांचल संपादक : डॉ. मीरा सिन्हा प्रकाशक : हावड़ा विद्यार्थी मंच, आशुतोष मुखर्जी लेन, सालकिया, हावड़ा पृष्ठ : 132 मूल्य : रु. 100.