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सामाजिक नीति की तार्किक पड़ताल

पुस्तक समीक्षा
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डेवलपमेंट इकोनॉमिस्ट रीतिका खेरा ने अपनी हालिया किताब ‘रेवड़ी या हक़’ में मातृत्व लाभ, आंगनवाड़ियां, स्कूलों में मध्याह्न भोजन, जन वितरण प्रणाली, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा), वृद्धावस्था, विधवा, विकलांगता पेंशन और स्कूली शिक्षा सरीखी विकास की मौजूदा नीतियों के गुण व दोषों का श्रमबहुल आकलन किया है।

रीतिका खेरा और उनके ज्यां द्रेज़ जैसे सैकड़ों सहयोगियों ने देश के छोटे-बड़े 18 राज्यों में सामाजिक नीतियों के क्रियान्वयन की पड़ताल करने के लिए बीते बीस वर्षों के दौरान अनेक प्राथमिक सर्वेक्षण किए हैं। उनसे पता चला है कि भारत में इस तरह की तमाम नीतियों को सरकार पर ‘बोझ’ के रूप में देखने और दिखाने का प्रचलन है, और इन्हें हक़ की बजाय ‘रेवड़ी’ कहा जाता है।

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लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में सामाजिक नीति के लिए एक अलग विभाग है, किन्तु हमारे देश की किसी भी सेंट्रल यूनिवर्सिटी में ‘सोशल पॉलिसी’ विभाग नहीं है। इस फ़ील्ड की उपेक्षा का यह एक संकेत भर है।

भारत की युवतियों, महिलाओं और बच्चों में कुपोषण की समस्या काफी विकट है। देश के आधे से ज़्यादा बच्चे और महिलाएं खून की कमी से पीड़ित हैं। हमारी 40 फ़ीसदी आबादी आज भी पोषक भोजन से वंचित है। यह हालत तब है जब देश के 82 करोड़ लोगों को पांच साल से मुफ्त राशन मिल रहा है।

मनरेगा की भी अनदेखी की जा रही है। दस राज्यों में 75 फ़ीसदी बेरोज़गारों ने मनरेगा में 100 दिन के रोज़गार की मांग की, जबकि केवल 3 फ़ीसदी को यह रोज़गार मिला। मातृत्व लाभ योजना को भी सस्ते में वोट बटोरने के उपाय के रूप में देखा जा रहा है।

आंगनवाड़ी कार्यक्रमों को लेकर राजनीतिक प्रतिबद्धता, जो शुरू से ही कम रही है, पिछले वर्षों में और घटी है।

भारत में सामाजिक और आर्थिक गैरबराबरी बहुत चिंताजनक है। असमानता हद से ज़्यादा बढ़ने पर समाज में झगड़े, मारामारी और अपराध बढ़ते हैं। आज़ादी के 78 साल बाद भी हमने न्याय, समानता व एकीकृत भावना का पाठ नहीं पढ़ा।

देश के एक फ़ीसदी धनी लोगों के हाथों में एक-तिहाई से ज़्यादा संपत्ति जमा है। मुट्ठी भर लोगों का विकास करने से देश विश्वगुरु नहीं बनेगा।

पुस्तक में बरते गए 59 चित्रों में निबल एवं भुक्तभोगियों की दीनता साफ़ झलकती है।

पुस्तक : रेवड़ी या हक़ लेखिका : रीतिका खेरा प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 286 मूल्य : रु. 499.

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