पुरुष संवेदनाओं पर नई दृष्टि
महिला-पुरुष के बीच भेदभाव पर टीका-टिप्पणी कोई नई बात नहीं है। दोनों के संबंध में लिखा, सुना और गाया भी बहुत गया है। महिलाओं की ‘फीलिंग’ को लेकर अनेक कालजयी गीत पुरुषों ने लिखे हैं। पुरुषों की भावनाओं को भी व्यक्त करने के लिए अबकी बार कलम चलाई है लेखिका डॉ. शशि मंगल ने। किताब की सामग्री और प्रस्तुतीकरण अनेक मामलों में अलहदा है। एक तो आप पुस्तक को कहीं से भी पढ़ सकते हैं, दूसरा— इसमें कहीं कविता है और कहीं कहानी, कहीं निबंध और कहीं एक ही अध्याय में गद्य और पद्य दोनों।
लेखिका ने कोशिश की है कि पुरुष हो या महिला, उनकी भावनाओं और विचारों को लिंगात्मक भेदभाव से इतर देखने की जरूरत है। किताब में ‘बाप’ नामक कहानी भावुक है। ऑटोवाला भी तो एक बाप है — इसलिए महिला यात्री के साथ अच्छे से पेश आता है और मूंगफली व लंच बॉक्स पाकर खुश होता है, क्योंकि उसके बच्चे इससे खुश होंगे। इसी तरह कहानी ‘आज’ में फलवाले का उपहार में मिले फलों को अपनी बिटिया के लिए रखना भी भावुक है।
‘ओ धनी कलम के बोलो’ शीर्षक से कविता में वह लिखती हैं—‘माता-पिता दोनों के ही नाम की लिखी जाए अब नई रामायण।’ पूरे लेखन का केंद्रबिंदु है—पुरुष। ‘त्रासदी तब से, अब तक, क्यों? कब तक?’ में एक जगह लेखिका लिखती हैं—‘क्यों कठोरता सौंपी गई पुरुष को? क्यों छीन लिया गया उससे रोने का अधिकार?’
तर्कों और उदाहरणों के माध्यम से पुस्तक पुरुष के प्रति पूर्वाग्रहों से सावधान करती है। सरल भाषा में रची यह कृति थोड़ी बोझिल होते हुए भी अपनी भावनात्मक गहराई और नयापन से पाठक को बांधे रखती है।
पुस्तक : पुरुष पत्थर का? लेखिका : डॉ. शशि मंगल प्रकाशक : साहित्यागार, जयपुर पृष्ठ : 168 मूल्य : रु. 325.
