सुभाष रस्तोगी
बहुआयामी प्रतिभा और बहुमुखी व्यक्तित्व की धनी यशस्वी साहित्यकार कमल कपूर के अब तक आठ कहानी-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। लेखिका का एक मराठी में भी कहानी-संग्रह प्रकाशित हुआ है, तीन लघुकथा संग्रह, पांच काव्य संग्रह तथा एक बाल-गीत संग्रह हमें उपलब्ध हैं। ‘आखिरी सांस तक’ शीर्षक से उनका एक उपन्यास है जो उपन्यास की नायिका शिक्षा की मार्फत एक स्त्री के ‘अहं अस्मि’ मैं हूं होने को सिद्ध करता है। चित्रा मुद्गिल की मानें तो ‘मुझे उसकी रचनात्मकता में जिन नये चिंतन-बिंदुआें की तलाश रहती है, कहने में संकाेच नहीं कि वे बिंदु उसके कथा-विन्यास में अनुपस्थित नहीं हैं।’
दरअसल ‘अस्मि’ में मधु की मार्फत शिक्षा की कहानी को उकेरा गया है जिसमें पितृसत्तात्मक समाज में पुरुष की वरीयता को लेकर फैलाये गये भ्रम को परत-दर-परत तोड़ा गया है। शिप्रा निरंतर अपने पति को अमानवीयता को सहती है, लेकिन अपनी साहित्य-साधना, साहित्यिक गोष्ठियों में संभागिता से तनिक भी समझौता नहीं करती। वास्तव में शिप्रा साहस का दूसरा नाम है। शिप्रा का पति कहीं हीन ग्रंथि से ग्रस्त है और मन ही मन शिप्रा की प्रतिभा में वह कुंठित है। अपनी पत्नी शिप्रा पर उसके पति की घरेलू हिंसा का एक कारण यह भी है। शिप्रा जब बार-बार उससे अलग रहना शुरू कर देती है, तब उसका पति भयभीत हो उठता है कि वह शिप्रा के बिना कैसे रहेगा। वह जैसे-तैसे उसे मना कर अपने साथ रहने के लिए मना लेता है। लेकिन शिप्रा के पति का यह अभिनय कभी उसकी हीन ग्रंथि को ज्यादा देर तक टिका नहीं रहने देता।
फिर शिप्रा पर उसके पाशविक अत्याचार की इस सनक में वह उसका पति है, पुरुष है, पुरुष है तो उसका आधिपत्य है शिप्रा पर, उसे मारे-पीटे, अपनी हीन ग्रंथि के कारण उसके साहित्यिक पुरुष मित्रों से उसके अनाप-शनाप संबंध जोड़े, यह शिप्रा को स्वीकार नहीं है। अन्तत: शिप्रा अकेले ही रहने का निर्णय लेती है।
शिप्रा के पति की इस हीन ग्रंथि का एक दूसरा कारण भी है शिप्रा की प्रतिभाहीन लेखिका मित्र से उसका संबंध होना। कमल कपूर से इस सद्य: प्रकाशित उपन्यास ‘अस्मि’ में स्त्री विमर्श का एक दूसरा ही रूप उद्घाटित हुआ है कि स्त्री की असल शत्रु स्त्री ही है। लेखिका का यह सद्य: प्रकाशित उपन्यास ‘अस्मि’ हिन्दी में स्त्री विमर्श पर अम्बार लगे उपन्यासों में अपने कथ्य निर्वहण में अपना रास्ता अलग बनाता इसलिए प्रतीत होता है क्योंकि शिप्रा के माध्यम से स्त्री के ‘अहं अस्मि’ मैं हूं पर प्रकाशवृत्त केंद्रित किया गया है। समग्रत: कमल कपूर का यह दूसरा उपन्यास ‘अस्मि’ स्त्री के ‘मैं हूं’ को सिद्ध करता है और निश्चय ही यह उपन्यास स्त्री विमर्श की एक सार्थक पहल के रूप में सामने आया है।