डॉ. पुरुषोत्तम ‘पुष्प’ ने भारतीय काव्यशास्त्र के परिप्रेक्ष्य में ‘साहित्य में सौंदर्य विवेचन’ शीर्षकस्थ पुस्तक में सौंदर्य तत्व के अन्वेषण का गंभीर और उत्कृष्ट विवेचन प्रस्तुत किया है। उन्होंने ‘साहित्य में सौंदर्य’ की स्थिति पर गहन चिंतन करके स्वमत स्थापित करने का श्लाघनीय उपक्रम किया है। सौंदर्य पर अपने विचार प्रकट करते हुए वे लिखते हैं—‘सौंदर्य का सीधा संबंध हमारी बौद्धिक चेतना से है। जो समाज कला के क्षेत्र में जितना अधिक उन्नत होगा, उसकी बौद्धिक चेतना उतनी ही अधिक विकसित होगी और सौंदर्यबोध उतना ही स्फीत होगा। प्रकृति में सुंदर-असुंदर अथवा रूपता-कुरूपता नाम का कोई तत्व नहीं है। हमारे मन का विक्षेप अथवा हमारी चेतना ही पदार्थों को सुंदरता अथवा असुंदरता का आवरण प्रदान करती है और कला ने ही हमें प्रकृति की अपार छटा की पहचान कराई है।’
डॉ. ‘पुष्प’ ने विवेच्य पुस्तक को चौदह अध्यायों में विवेचित किया है, यथा—सौंदर्य का अर्थ एवं स्वरूप, कला में सौंदर्य के तत्व, भारतीय वांग्मय में सौंदर्य विवेचन, भारतीय काव्यशास्त्र में सौंदर्य विवेचन, भारतीय काव्यशास्त्र में सौंदर्य तत्व की खोज, भारतीय वाङ्गमय में रस, ध्वनि, कल्पना का सौंदर्य, बिंब का सौंदर्य, प्रतीक का सौंदर्य, सौंदर्यशास्त्रीय आलोचना, कला के प्रकार्य, कला आलोचना—उसके प्रकार तथा पद्धतियां।
डॉ. पुरुषोत्तम ‘पुष्प’ की कृति के अध्याय ‘भारतीय वांग्मय में सौंदर्य’, ‘भारतीय कलाशास्त्र में सौंदर्य’ और ‘भारतीय काव्यशास्त्र में सौंदर्य तत्त्व की खोज’ पुस्तक के मुख्य प्राणतत्त्व माने जा सकते हैं। डॉ. ‘पुष्प’ काव्य को संगीत और नाटक कला से जुड़े होने के कारण उच्चस्तरीय ललित कला मानने के पक्षधर हैं।
डॉ. पुरुषोत्तम ‘पुष्प’ की यह कृति साहित्यिक सौंदर्य विवेचन में भारतीय और पाश्चात्य चिंतन के समन्वय से प्रामाणिक व सुबोध दृष्टि प्रस्तुत करती है।
पुस्तक : साहित्य में सौंदर्य विवेचन लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम 'पुष्प' प्रकाशक : वाग्देवी प्रकाशन, सोनीपत पृष्ठ : 167 मूल्य : रु. 450.

