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उधार का जीवन

कविता
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राजेंद्र कुमार कनोजिया

उधार का

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जीवन जीते हैं, हम।

सांसें हमारी,

हवा पेड़ की,

भूख हमारी

फल पेड़ का,

प्यास हमारी

जल नदी का ,

नदी बारिशों वाली।

घर, मिट्टी, सीमेंट

गारे के,

सब ज़मीन का।

हमारा कुछ भी नहीं,

न जल, न ज़मीन

न धरती, न आसमान

केवल रजिस्ट्री हमारे नाम की,

और थोड़ा-सा गुरूर,

जाने किस बात का।

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