राजेंद्र कुमार कनोजिया
उधार का
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जीवन जीते हैं, हम।
सांसें हमारी,
हवा पेड़ की,
भूख हमारी
फल पेड़ का,
प्यास हमारी
जल नदी का ,
नदी बारिशों वाली।
घर, मिट्टी, सीमेंट
गारे के,
सब ज़मीन का।
हमारा कुछ भी नहीं,
न जल, न ज़मीन
न धरती, न आसमान
केवल रजिस्ट्री हमारे नाम की,
और थोड़ा-सा गुरूर,
जाने किस बात का।
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