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सामाजिक विद्रूपताओं पर पैनी नज़र

पुस्तक समीक्षा

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साहित्यकार अशोक भाटिया द्वारा रचित समीक्ष्य लघुकथा-संग्रह ‘जंगल में आदमी’ के दूसरे संस्करण में सन‍् 1977 से लेकर 1990 तक लिखी सड़सठ लघुकथाएं शामिल हैं। इनमें से बहुत-सी लघुकथाएं जैसे ‘पीढ़ी-दर-पीढ़ी’, ‘व्यथा-कथा’, ‘गलत शुरुआत’, ‘जिजीविषा’, ‘टाइम और ट्यून’, विषम परिस्थितियों की विवशताओं को रेखांकित करते हुए भी कथ्य को सकारात्मकता और कर्मण्यता की रोशनी में ले आती हैं, तो लघुकथा ‘शिवराम की ‘मृत्यु’ अंतर्द्वंद्व की अभिव्यक्ति है।

‘तीसरा चित्र’, ‘बंद दरवाज़ा’, ‘जिंदगी’, ‘परमपिता’, ‘किधर’, ‘भूख’, लघुकथाओं में आमजन संग हाशिए पर धकेले गए जनमानस की व्यथा और पीड़ात्मक मनोभावों का उजला एवं स्याह चित्रण सामाजिक विद्रूपताओं को उजागर करते हुए अभाव की नियति का लेखा-जोखा भी प्रस्तुत करता है। ‘गरीबी में बरबस चली आई मूक कुण्ठाओं की अभिव्यक्ति भी देखने को मिलती है लघुकथा ‘अंतिम कथा’ में।

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आर्थिक असमानता तो राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि के लिए रचे गए प्रपंचों की असलियत को उजागर करती हैं लघुकथाएं ‘नया आविष्कार’, ‘हुकूमत’, तो लचर कानून-व्यवस्था पर कटाक्ष है लघुकथा ‘उपाय’। पुलिस पर रिश्वतखोरी के टैग को दुत्कारती नजर आती है लघुकथा ‘प्रतिक्रिया’। ‘टूटते हुए तिनके’, ‘कागज़ की किश्तियां’, ‘बीच का आदमी’, प्रशासनिक विसंगतियों के प्रति जागरूक करते हुए रिश्तों में आत्मीयता की भावना को भी दर्शाती हैं। ‘ड्यूटी’ मानवीय संवेदना को झकझोरती है। ‘हां-ना’, जवान दिलों की धड़कनों की खबर लेती है। ‘दिल की बात’ की अंतिम पंक्ति आसक्त मन को झिंझोड़ती है। दोहरे मानव-चरित्र एवं मापदंड पर कटाक्ष हैं ‘परमिट’, ‘दोहरी समझ’, ‘दिशा’, ‘ज़माने की होली’, ‘चौथा चित्र’, तो दहेज लोलुपता पर व्यंग्य कसती है ‘अच्छा घर’। अंतरंगी रिश्तों की खबर लेती है ‘उनके खात’।

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‘रंग’, ‘वीटो’ लघुकथाओं में मनोवैज्ञानिक अनुभूतियों के मर्म एवं इनके नेपथ्य में व्याप्त मनोभावों की सार्थक एवं सुंदर अभिव्यक्ति है। आर्थिक मजबूरी को रेखांकित करती है लघुकथा ‘मजबूरी’। रूढ़िवादिता की आड़ में पनपी स्वार्थी मान्यताओं के प्रति वाजिब विरोध का स्वर है लघुकथा ‘बेपर्दा’, ‘श्राद्ध’, ‘मृतक’। सौंदर्य बोध के बहाने फिजूलखर्ची पर कटाक्ष है ‘नया बोध’। अल्हड़पन की उमड़ती, हिलौरे लेतीं उमंगों की सुंदर अभिव्यक्ति हुई है लघुकथाओं ‘डर के पीछे’ और ‘अमिया’ में। कुछेक लघुकथाओं जैसे- ‘नया पथ’, ‘उसका भगवान’, ‘गुब्बारा’, ‘अधिकार’, में बाल-मनोविज्ञान का सुंदर चित्रण प्रस्तुत हुआ है।

लघुकथाएं पाठक को उत्सुक बनाए रखते हुए सहज भाषा, सशक्त भाव-संप्रेषण और प्रभावशाली प्रतीक प्रयोग प्रस्तुत करती हैं।

पुस्तक : जंगल में आदमी लेखक : अशोक भाटिया प्रकाशक : यूनिक्रिएशन पब्लिशर्स, कुरुक्षेत्र पृष्ठ : 124 मूल्य : रु. 150.

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