लघुकथा विधा को स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले रचनाकारों की शृंखला की तीसरी कड़ी में सुप्रसिद्ध लघुकथाकार और मर्मज्ञ अशोक भाटिया ने ‘अंधेरे में गुम आदमी’ के तहत युगल की 89 लघुकथाओं, आत्मकथ्य और संस्मरणों का संकलन और संपादन किया है। ये लघुकथाएं 1993 से 2009 के बीच लिखी गई हैं, और इस विधा पर उनसे बातचीत हरिनारायण सिंह ‘हरि’, मुकेश कुमार मृदुल और सुरेश जांगिड़ ‘उदय’ द्वारा की गई है। युगल के साहित्य और संस्मरण पर अश्विनी कुमार आलोक के लेख और रामयतन यादव सहित स्वयं अशोक भाटिया ने भी आलेख लिखे हैं, तथा पड़ताल प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने की है।
अपने आत्मकथ्य में युगल लघुकथा के विभिन्न पक्षों पर गंभीरता से टिप्पणी करते दिखाई देते हैं। उनके अनुसार, लघुकथा में कथ्य की वैचारिक दृष्टि जितनी आवश्यक है, उतना ही आवश्यक है कथातत्त्व भी। कथा पाठक को रस से जोड़ती है, तादात्म्य करती है और मन में ठहराव पैदा करती है। वे कहते हैं कि ‘भाषा के प्रति मैं शुरू से ही सावधान रहा हूं। भाषा की आंतरिक सज्जा और शब्द-शक्ति के विन्यास में असावधानी की गुंजाइश नहीं होती। अत: मेरी चेष्टा रही है कि मैं लघुकथा लिखूं नहीं, बल्कि सामने बैठे पाठक से कहूं।’ इस बात का प्रमाण संकलित लघुकथाएं स्वयं देती हैं।
एक लघुकथाकार के रूप में अधिक जाने गए युगल ने कहानियां, उपन्यास, नाटक और निबंध भी लिखे। साथ ही ‘संवेद’ पत्रिका और लघुकथा को समर्पित द्वैमासिक ‘फलक’ का संपादन भी किया था। लघुकथा के बाहरी आकार को वे कुछ शब्दों, कुछ मिनटों का मानते थे, जो पाठक को आकर्षित करता है, परंतु उस लघु आकार के भीतर जो कथ्य का विस्तार होता है, वही पाठक को सोचने पर विवश करता है।
पुस्तक : अंधेरे में गुम आदमी संपादक : अशोक भाटिया प्रकाशक : भावना प्रकाशन, दिल्ली पृष्ठ : 184 मूल्य : रु. 350.

