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हिमालयी इतिहास-संस्कृति की झांकी

पुस्तक समीक्षा
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कमलेश भट्ट

मदन चन्द्र भट्ट द्वारा लिखित हिमालय का इतिहास भारतीय इतिहास और संस्कृति के अद्वितीय केंद्र हिमालय क्षेत्र पर आधारित एक महत्वपूर्ण अध्ययन है। यह पुस्तक हिमालय की भौगोलिक और सांस्कृतिक महत्ता पर तो प्रकाश डालती ही है, साथ ही उसके ऐतिहासिक संदर्भों का भी विस्तृत आकलन प्रस्तुत करती है। विशेषकर, उत्तराखंड के मध्य हिमालय क्षेत्र के इतिहास पर केंद्रित इस पुस्तक में पुरातत्व, ताम्रपत्र, लोक इतिहास और साहित्यिक साक्ष्यों का गहन विश्लेषण किया गया है, जो इसे एक महत्त्वपूर्ण पाठ्य सामग्री बनाता है।

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पुस्तक के विशेष पहलुओं में तीन प्रमुख युद्धों का विवरण दिया गया है, जिनमें बहराइच, गयासुद्दीन बलबन और तैमूर के खिलाफ लड़ी गई लड़ाइयां शामिल हैं। इन युद्धों के माध्यम से लेखक ने उत्तराखंड के कत्यूरी राजाओं की वीरता और उनके ऐतिहासिक योगदान को प्रमुखता से प्रस्तुत किया है। इसके साथ ही, लेखक का यह तर्क भी खासा दिलचस्प है कि उत्तराखंड में कुमाऊं और गढ़वाल के अलावा शिवालिक के रूप में एक तीसरा राज्य भी था जिसे ‘सपादलक्ष’ कहा जाता था।

लेखक ने पुरातात्विक साक्ष्यों जैसे शैलचित्रों, अभिलेखों, ताम्रपत्रों, और सिक्कों के अलावा प्राचीन ग्रंथों और लोक अनुश्रुतियों का भी उपयोग किया है, जिससे हिमालय के इतिहास को अधिक सजीव और प्रामाणिक रूप में प्रस्तुत किया गया है। किताब में विभिन्न विवादित निष्कर्षों पर भी ध्यान दिया गया है, जो इसे संतुलित और वस्तुनिष्ठ बनाते हैं। हिमालय क्षेत्र के उपेक्षित इतिहास और उसकी सांस्कृतिक धरोहर को पुनः स्थापित करने का प्रयास इस कृति को सारवान बनाता है। लेखक ने हिमालय क्षेत्र के ऐतिहासिक पक्षों को उजागर करने के साथ-साथ भारत की सांस्कृतिक एकता में इसके योगदान को भी रेखांकित किया है।

पुस्तक : हिमालय का इतिहास लेखक : मदन चन्द्र भट्ट प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 312 मूल्य : रु. 350.

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