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नये भारत को समझने का अलग नजरिया

पुस्तक समीक्षा
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आलोक पुराणिक

भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से विकास कर रही है, यह बात तमाम तरह के आंकड़ों में दिखाई देती है। दुनिया की टॉप पांच अर्थव्यवस्थाओं में शामिल भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत जल्दी दुनिया की शीर्ष तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जायेगी, इस तरह की बातें भी लगातार सुनी जा रही हैं।

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परकाला प्रभाकर ने इंग्लिश में एक किताब लिखी : ‘दि क्रुक्ड टिंबर आफ न्यू इंडिया-एसेज आन ए रिपब्लिक इन क्राइसिस।’ इसका हिंदी में अनुवाद किया है व्यालोक पाठक ने, हिंदी अनूदित किताब का नाम है : नये भारत की दीमक लगी शहतीरें।

परकाला प्रभाकर एकदम अलग तरीके से बताते हैं कि भारत की हालत उतनी चमकदार नहीं है, जितनी दिखाई देती है। परकाला प्रभाकर अपने निबंध-इगोक्रेसी-डिजिटल स्वतंत्रता और डेटा की निजता में लिखते हैं कि आज तकनीकी कंपनियां हमारे बारे में हमसे भी ज्यादा जानती हैं। यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है, अग्रणी एलगारिद्म के जरिये हमारी हरेक गतिविधि को देखा सुना जाता है और अति विकसित मनोवैज्ञानिक औजारों को हमारे व्यक्तित्व के विश्लेषण के लिए इस्तेमाल किया जाता है। तकनीक विशारद‍् हमारी पसंद-नापसंद को जानते हैं। खरीदने, खाने, राजनीति, हमारे सेक्सुअल रुझान, हमारे भुगतान के इतिहास, मेल के इतिहास, काल करने के प्रारूप, इंटरनेट खंगालने के इतिहास... यानी संक्षेप में वह सब कुछ, जो हम अपने जीवन में करते हैं, इन कंपनियों तक पहुंचता है।

परकाला प्रभाकर एक ऐसी सच्चाई को रेखांकित करते हैं, जिसके बारे में कई लोगों को तो पता भी नहीं है।

भारत के बेरोजगार, अकुशल और अयोग्य निबंध में प्रभाकर ने लिखा है कि भारत कौशल रिपोर्ट 2021 के नतीजे भी निराशाजनक हैं। औपचारिक शिक्षा प्राप्त लोगों में रोजगार पाने का प्रतिशत 50 फीसदी से कम है। बीटेक के 47 फीसदी, एमबीए के 47 फीसदी, बीए के 43 प्रतिशत, बीकाम के 40 प्रतिशत और बीएससी के 30 प्रतिशत लोगों को ही रोजगार के लायक समझा सकता है।

कुल मिलाकर भारत पर एक अलग तरह का नजरिया समझने के लिए यह किताब महत्वपूर्ण है।

पुस्तक : नये भारत की दीमक लगी शहतीरें लेखक : परकाला प्रभाकर अनुवाद : व्यालोक पाठक प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 247 मूल्य : रु. 399.

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