लोकतंत्र की जड़ें आसानी से नहीं जमतीं। जड़ों पर निगाह रखनी होती है कि कहीं वे कमजोर तो नहीं हो रही हैं। अमेरिकन विद्वानों स्टीवेन लेवित्सकी और डेनियल जि़ब्लाट ने पुस्तक लिखी थी— ‘हाऊ डेमोक्रेसीज डाइ’। पुस्तक का अभिषेक श्रीवास्तव द्वारा किया हिंदी अनुवाद अभी ‘लोकतंत्र की चौकीदारी’ के नाम से आया है।
लेखक अमेरिकी लोकतंत्र के चरित्र पर टिप्पणी करते हुए लिखते हैं—अमेरिकी इतिहास ज्यादातर समय ऐसा ही रहा है जब राजनीतिक दलों ने खुलेपन की जगह चौकीदारी को तरजीह दी है। फलत: हमेशा ही यहां बंद कमरों में गुप्त मंत्रणाएं चलती रही हैं।
यानी खुलापन हमेशा खुलापन नहीं होता। बंद कमरों की योजनाओं का असर लोकतंत्र पर पड़ता ही है।
किताब कई महत्वपूर्ण जानकारियां साझा करती है। अमेरिका के प्रख्यात उद्योगपति हेनरी फोर्ड के बारे में किताब बताती है—फोर्ड एक अखबार चलाते थे, जिसका नाम था ‘डियरबार्न इंडिपेंडेंट’। इस अखबार के माध्यम से वह बैंकरों, यहूदियों और बोल्शेविकों (कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों) के खिलाफ मुहिम चलाते थे। पूंजी का राजनीति से हमेशा गहरा रिश्ता रहा है।
यह किताब डोनाल्ड ट्रंप के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां पेश करती है—‘मैं राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने जा रहा हूं’, 15 जून, 2015 को रियल एस्टेट कारोबारी और रियलिटी टीवी के सितारे डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी इमारत ट्रंप टावर की स्वचालित सीढ़ियों से नीचे लॉबी में आकर यही ऐलान किया था। इसलिए उस वक्त उनके ऐलान को हवाबाजी ही माना गया।
मीडिया और राजनीति का रिश्ता देखना हो, तो इस तथ्य को देखना चाहिए कि 2015 में ट्रंप के राष्ट्रपति बनने की बात को एकदम हवाई बात माना जा रहा था, पर मीडिया में जिस तरह का माहौल बना, उसमें ट्रंप एक नहीं दो बार राष्ट्रपति बने। मीडिया अब लोकतंत्र का बहुत ही महत्वपूर्ण कारक है। लोकतंत्र के लिए आदर्श माने जाने वाले देश अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप हिंसा की वकालत करते हुए कई बार दिखे हैं। किताब उद्धरण पेश करती है, जिनमें ट्रंप हिंसा की वकालत कर रहे हैं—‘अगर आपको कोई टमाटर फेंकने की तैयारी करता दिखे तो मार-मारकर उसका भूसा निकाल दो। बस उसे अच्छे से पीट दो। तुम्हारी कानूनी फीस मैं अपनी जेब से दूंगा। मेरा वादा है।’
पुस्तक साफ करती है कि दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका का लोकतंत्र भी उन्हीं बीमारियों के समक्ष लाचार है, जिन्होंने दूसरी जगहों पर लोकतंत्र की जान ली है। किताब लोकतंत्र के मिजाज को समझने में मदद करती है।
पुस्तक : लोकतंत्र की चौकीदारी लेखक : स्टीवेन लेवित्सकी, डेनियल जि़ब्लाट अनुवाद : अभिषेक श्रीवास्तव प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 271 मूल्य : रु. 399.