लेखनी से समाज को रक्तदान के लिए प्रेरित कर रहे साहित्यकार
रोहतक, 7 फरवरी (हप्र)
रक्तदान में रोहतक के साहित्यकारों का विशेष योगदान रहा है। विशेष कर जिले के कस्बे सांपला से रक्त क्रांति की शुरुआत हुई थी। यूं तो सांपला और इसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्र में 1996 में रक्तदान शिविरों की शुरुआत हो गई थी, मगर गांव-गांव तक पहुंचने में इसे 7 साल का समय लग गया। रक्तदान को जन जागरण अभियान बनाने में जिले के साहित्यकारों ने अलख जगाई थी।
उन्होंने न केवल अपनी कहानी, कविताओं से युवाओं को रक्तदान के लिए प्रेरित किया अपितु रक्तदान शिविरों का आयोजन कर खुद भी रक्तदान किया और अपने मित्रों व परिजनों को शामिल किया। जिले में पिछले 1 साल में एकत्रित हुई 50 हजार रक्तदान यूनिट में भी साहित्यकारों का अपना अलग स्थान है। इस पर जिला प्रशासन द्वारा हाल ही में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में आयोजित रेडक्राॅस की कार्यशाला में अग्रणी साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। रोहतक रेडक्रॉस के सचिव श्याम सुंदर ने कहा कि पिछले 1 साल में करीब 50 हजार यूनिट रेडक्रॉस द्वारा एकत्रित किया गया। रक्तदान को लेकर साहित्यकारों ने युवाओं में एक तरह से क्रांति लाने का काम किया है। रेडक्रॉस के लिए जिला के साहित्यकारों का योगदान अमूल्य है, जिसके लिए वे इनके आभारी हैं।
बाबू बाल मुकंद गुप्त पुरस्कार समेत अनेक सम्मान पा चुके मॉडल टाउन निवासी डॉ. मधुकांत बंसल से बात की तो उन्होंने बताया कि उनके द्वारा रक्तदान पर लिखा उपन्यास गूगल बॉय शहर में स्थित बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय के सिलेबस में शामिल है। वे सामाजिक मुद्दों व देशभक्ति अब तक करीब 207 पुस्तकें लिख चुके हैं, जिनमें से 20 पुस्तकें रक्तदान की महत्वता पर हैं। उन्होंने बताया कि देश में पहली बार रक्तदान पर एक छात्रा शोध कर रही है, जो इनके द्वारा लिखे साहित्य पर है। इन्होंने 50 साल की आयु पार करने के बाद 17 बार रक्तदान किया।
महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन विभाग की पूर्व प्रोफेसर एवं हरियाणा अध्ययन केंद्र की पूर्व निदेशक डॉ. अंजना गर्ग ने बताया कि उनकी 400 से अधिक लघुकथाएं विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। वे 160 से अधिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संगोष्ठियों में अपने विचार प्रकट कर चुकी हैं। वे रक्तदान पर 20 से अधिक कविताएं, लेख और 30 से अधिक लघुनाटक लिख चुकी हैं। 19 साल की उम्र से ही उन्होंने रक्तदान करना शुरू किया था और करीब 15 बार रक्तदान किया है।
सर्व हरियाणा ग्रामीण बैंक से सीनियर मैनेजर पद से सेवानिवृत आशा लता खत्री ने बताया कि वे 10 साल से रक्तदान पर लिख रही हैं। उनकी दोहावली में 400 दोहे शामिल हैं। बेटी के जन्म पर जब रक्त की जरूरत हुई तो उसकी कीमत का एहसास हुआ, तब उन्होंने रक्तदान पर लिखने की सोची थी।
गांव ब्राह्मणवास के डॉ. चंद्र दत्त शर्मा ने बताया कि वे काव्य संग्रह और कहानियों के माध्यम से युवाओं को रक्तदान के लिए प्रेरित कर रहे हैं। वे स्वयं 15 बार रक्तदान कर चुके हैं। उन्होंने 20 से अधिक स्वतंत्र कविताएं लिखी हैं।
इन साहित्यकारों ने भी दिया योगदान
जिला के कुछ अन्य साहित्यकारों ने स्वैच्छिक रक्तदान पर रचनाएं लिखकर तथा गायन के माध्यम से रक्तदान कार्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिनमें प्रमुख रूप से ममता साहनी, मीनाक्षी ढल, डॉ. रमाकांता, डॉ. राजल गुप्ता, आशा विजय विभोर, अर्चना कोचर, डॉ. गोपाल कृष्ण, पवन मित्तल, रामधारी खटकड़, नवल पाल प्रभाकर, रामकिशन राठी, राजेश लूंबा, वीरेंद्र मधुर, डॉ. वेद प्रकाश सोरान, प्रो. शामलाल कौशल व हरनाम शर्मा आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं।