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बिन हाथों पीएचडी, एथलेटिक्स में आसमां...

मदवि गर्ल्स हॉस्टल की वार्डन डॉ़ सुनीता मल्हान को नारी शक्ति अवार्ड

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पानीपत में आयोजित बेटियों की लोहड़ी कार्यक्रम में डाॅ. सुनीता मल्हान को नारी शक्ति अवार्ड देकर सम्मानित करती केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी। -हप्र
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हरीश भारद्वाज/हप्र

रोहतक, 15 जनवरी

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महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय (मदवि) की गर्ल्स हॉस्टल की वार्डन डाॅ. सुनीता मल्हान अपने साहस और दृढ़ निश्चय से देशभर में लड़कियों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गई हैं। दोनों हाथ गंवाने के बावजूद अपनी हिम्मत के चलते शिक्षा खेल, समाज सेवा और सांस्कृतिक गतिविधियों में उत्कृष्ट उपलब्धियां हासिल की।

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पानीपत में आयोजित बेटियों की लोहड़ी कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी ने डाॅ. सुनीता मल्हान को प्रतिष्ठित नारी शक्ति अवार्ड से नवाजा। वह तैराकी में भी वह पदक जीत चुकी है। हाथ नहीं होने के बाद उन्होंने अपने पैरों की शक्ति को पहचाना और दुनिया जीत ली और मिसाल कायम की। मूलरूप से झज्जर के सुबाना गांव निवासी डॉ़ सुनीता मल्हान वर्ष-1987 में 21 वर्ष की उम्र में हुये एक हादसे में दोनों हाथ गवां बैठी और पति ने तलाक दे दिया। उसने हिम्मत नहीं हारी। सुनीता ने पैरों को ही अपनी बाजू बनाने की ठान ली। उन्होंने बताया कि इलाज के दौरान एक नर्स ने उन्हें हौसला दिया। स्वयं ही कापी पैन लाकर दिए और पांव से पैन पकड़ना सिखाया। पैर से लिखने के कारण शुरू में बहुत कष्ट हुआ, पर लगातार अभ्यास से वह लिखने में सफल रही। इसके साथ ही उन्होंने परीक्षा की तैयारी भी की और एमए प्रथम वर्ष की परीक्षा दी। सुनीता ने एमए के बाद पीएचडी भी कर ली। वर्ष 1989 में उन्होंने एमफिल की ओर वर्ष 1990 में बतौर लेक्चरार नौकरी की। बाद में उसी वर्ष वार्डन के तौर पर नियुक्त हो गई। इसके बाद उन्होंने पीएचडी की तथा अनेक उपलब्धियां हासिल की। गत वर्ष कैंसर की सर्जरी के बाद सुनीता कोरोना की चपेट में भी आ गई थी मगर उसने हौसले से न केवल कैंसर से निजात पाई अपितु कोरोना से भी जंग जीतने में कामयाबी हासिल की।

ये अवार्ड और उपलब्धियां की हासिल

डॉ़ सुनीता मल्हान को मोस्ट एफिशिएंट इप्लाइज अवार्ड, स्त्री शक्ति के लिए वर्ष-2010 में रानी लक्ष्मीबाई अवार्ड से नवाजा गया। राष्ट्रपति द्वारा भी दो बार सम्मानित किया जा चुका है। 2013 में राज्य तैराकी प्रतियोगिता में रजत पदक जीता। 2012 में 14वीं वरिष्ठ पैराओलंपिक राष्ट्रीय खेलों में रेस में स्वर्ण और 400 मीटर दौड़ में रजत पदक हासिल किया। वर्ष-1997 में विश्वविद्यालय की कर्मचारी खेल प्रतियोगिता से उन्होंने पदार्पण किया। 2005 में हुए इंगलैंड़ में पैराओलंपिक में 100 व 200 मीटर दौड़ में उन्होंने स्वर्ण पदक और वर्ष-2006 में मलेशिया में हुई एशियन गेम्स में 1500 मीटर में कांस्य पदक जीता। वर्ष 2013 में कुछ नया कर गुजरने की चाह ने डॉ़ सुनीता मल्हान के दिल में तैराकी सीखने का जज्बा जगाया और उन्होंने उसी वर्ष राज्य तैराकी प्रतियोगिता में रजत पदक जीतने में कामयाबी हासिल की। बीमारी के चलते वह वर्ष 2014 में तो तैराकी प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले पाई मगर वर्ष 2015 में उन्होंने राष्ट्रीय प्रतियोगिता में दौड़ के अलावा तैराकी में भी हिस्सा लिया। वार्डन सुनीता मलहान ने वर्ष 2014 में 12 से 14 मार्च तक बैंगलोर में आयोजित वरिष्ठ पैरा ओलंपिक राष्ट्रीय खेलों में भाग लिया। इन खेलों में चार गुणा सौ मीटर रेस में स्वर्ण पदक व चार सौ मीटर रेस में रजत पदक हासिल कर अपनी सफलता का परचम फहराया। उन्हें वर्ष 2005, वर्ष 2007 में देश के लिए लारेल लाने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा सम्मानित किया गया। तत्कालीन कृषि मंत्री ने उन्हें कमंडेशन सर्टिफिकेट से सम्मानित, वर्ष 2008-2009 के लिए सर्वश्रेष्ठ विकलांग कर्मचारी अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावा भी उन्हें कई अवार्ड मिल चुके हैं।

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