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घोड़ियों में गर्भपात के जिम्मेदार वायरस हार्पीस को खत्म करेगी वैक्सीन

राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने तैयार की दवा
सांकेतिक
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कुमार मुकेश/हप्रहिसार, 1 जून

करीब 15 प्रतिशत घोड़ियों में गर्भपात के सबसे बड़े कारण हार्पीस वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (एनआरसीई) के वैज्ञानिकों ने करीब पांच साल की रिसर्च के बाद देश की सबसे प्रभावशाली वैक्सीन तैयार की है। एनआरसीई के वैज्ञानिकों ने इस वैक्सीन का चूहों पर सफल प्रयोग कर लिया है और अब एक कंपनी से समझौता हुआ है जो इसका घोड़ों पर प्रयोग करके इसके प्रभाव को परखेगी। जिसके बाद यह वैक्सीनन शीघ्र ही बाजार में उपलब्ध होगी।

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वैक्सीन का निर्माण संस्थान के निदेशक डॉ. टीकेे भट्टाचार्य के मार्गदर्शन में डॉ. नीतिन बिरमानी, डॉ. बीसी बेरा, डॉ. तरुणा आनंद की टीम ने किया है। अश्व स्वास्थ्य इकाई के अध्यक्ष डॉ. नीतिन विरमानी ने बताया कि इस बीमारी की पहले से एक वैक्सीन है, लेकिन इस वैक्सीन की तरह प्रभावी नहीं है। पहले वाली वैक्सीन वायरस को मारकर तैयार किया गया था और उसका देश व दुनिया में प्रयोग हो रहा है। उस वैक्सीन के प्रयोग के कुछ समय बाद बीमारी वापस आ जाती है। अब वैज्ञानिकों ने वायरस से रोग बनाने वाली जीन को खत्म करके वैक्सीन तैयार की है।

इसमें 4 जीन को हटाकर वैक्सीन तैयार की गई है। दो जीन बीमारी पैदा करने वाले और दो रोग प्रतिरोधक क्षमता कम करने वाले जीन हैं और चारों को हटाकर यह वैक्सीन तैयार की गई है। इस वैक्सीन के बाद वायरस जिंदा रहेगा लेकिन रोग नहीं होने देगा और एंटीबॉडी भी बनाएगा, जिससे घोड़ियों को प्राकृतिक रूप से इस बीमारी से सुरक्षा मिलेगी। हार्पीस वायरस घोड़ी के लंग्स, ब्रेन व बच्चेदानी पर अटैक करता है। लंग्स में संक्रमण के कारण घोड़ों में श्वास संबंधी रोग, बुखार, खांसी हो जाते हैं। ब्रेन में संक्रमण से घोड़ा बेचैन रहता है और सोता नहीं पाता। वह छटपटाता रहता है। ब्रेन पर वायरस का अटैक कई बार जानलेवा बन जाता है। बच्चेदानी पर वायरस का इन्फेक्शन होने से गर्भपात हो जाता है या गर्भ में पल रहा बच्चा कमजोर पैदा होता है।

 

 

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