सर्पदंश से हर साल हजारों मौतें, इलाज से बचाव संभव, अंधविश्वास है बाधा
स्वास्थ्य विभाग, पीजीआईएमएस रोहतक के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग और फाउंडेशन फॉर पीपल-सेंट्रिक हेल्थ सिस्टम्स (नई दिल्ली) द्वारा सर्पदंश से बचाव विषय पर वर्कशॉप आयोजित की गई। कुलपति डॉ. एचके अग्रवाल ने कहा कि लोगों में जागरूकता बेहद कम है।
सर्पदंश की स्थिति में घबराना नहीं चाहिए और झाड़-फूंक जैसे अवैज्ञानिक उपायों से बचना चाहिए। पीड़ित को तुरंत अस्पताल ले जाकर एंटी-स्नेक वेनम (एएसवी) लगाना चाहिए। निदेशक डॉ. एसके सिंघल ने बताया कि भारत में हर साल करीब एक मिलियन मामलों में 58 हजार मौतें होती हैं और डब्ल्यूएचओ ने 2030 तक इसे आधा करने का लक्ष्य रखा है।
एफपीएचएस से आए डॉ. चंद्रकांत लहरिया ने कहा कि काटने के बाद भय से रक्त प्रवाह तेज होता है, इसलिए मरीज को शांत रखें और हिलाएं-डुलाएं नहीं। करीब 90 प्रतिशत सांप जहरीले नहीं होते। स्नेक मैन सतीश ने कहा कि धान के मौसम में मजदूर छोटे कमरों में सोते हैं, जहां सांप घुसकर काट लेता है। उन्होंने मांग की कि हर अस्पताल में एएसवी और प्रशिक्षित डॉक्टर हों। उन्होंने चेताया कि पीड़ित को घी या कुछ भी खाने-पीने को न दें। प्रो. डॉ. रमेश वर्मा ने कहा कि समय पर इलाज से अधिकांश मौतें रोकी जा सकती हैं।
ग्रामीणों से अपील
ग्रामीणों से अपील की कि धान के मौसम में खेतों में न सोएं। वर्कशॉप में विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि सरकार द्वारा डॉक्टरों को सर्पदंश प्रबंधन की विशेष ट्रेनिंग दी जानी चाहिए, ताकि गांव से लेकर जिला अस्पताल तक सही उपचार उपलब्ध हो सके।
ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा में एंटी-स्नेक वेनम और उपकरण रखना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है।
डॉ. डिंपल ने कहा कि इस तरह की जागरूकता वर्कशॉप समय-समय पर होनी चाहिए। इस अवसर पर डॉ. नीलम कुमार, डॉ. रमेश कुमार, डॉ. मीना, डॉ. मीनाक्षी, डॉ. वरूण अरोड़ा, डॉ. विनोद चायल सहित हरियाणा के विभिन्न कॉलेजों और पीजीआईएमएस के चिकित्सक मौजूद रहे।