इस बार पितृपक्ष में 100 साल बाद पड़ेगा चंद्र ग्रहण, सूर्य ग्रहण
सनातन धर्म में पितृपक्ष को अत्यंत पावन और महत्वपूर्ण माना जाता है। इस काल में पूर्वजों का स्मरण व पिंडदान और श्राद्ध विधि से उनका तर्पण किया जाता है।
पंडित ताराचंद जोशी ने बताया कि शास्त्रों के मुताबिक इस अवधि में पूर्वजों को प्रसन्न करने से उनके आशीर्वाद की प्राप्ति होती है और परिवार में सुख-समृद्धि का वास बना रहता है। साथ ही घर से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है। इस बार सात सितंबर पूर्णिमा से शुरू हो रहे पितृ पक्ष में विशेष संयोग बन रहा है। सौ साल बाद पितृ पक्ष से पहले चंद्र ग्रहण व अंत में सूर्य ग्रहण पड़ रहा है। एक पक्ष में दो ग्रहण पड़ना अशुभ माना जाता है। उनके अनुसार लगभग 100 साल बाद ऐसा संयोग बन रहा है। पितृपक्ष के दौरान चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण दोनों एक पक्ष में पड़ेंगे। ग्रहण की यह घटना पितरों की शांति, तर्पण और कर्मकांड को बेहद खास बनाएगी। प्रतिपदा का श्राद्ध आठ सितंबर को होगा। इस बार नवमी तिथि की हानि हो रही है। पंचमी और षष्ठी तिथि का श्राद्ध 12 सितंबर को होगा। चंद्रग्रहण सात सितंबर को रात 9-57 बजे शुरू होगा और 1-27 बजे मोक्ष होगा। जो भारत में दिखाई देगा। इसके नौ घंटे पूर्व सूतक काल की शुरुआत हो जाएगी। वहीं 21 सितंबर को पितृ विसर्जन पर सूर्यग्रहण पड़ रहा है। हालांकि, सूर्य ग्रहण को भारत में नहीं देखा जा सकेगा।
खास बात यह है कि चंद्रग्रहण व सूर्य ग्रहण पितरों के श्राद्ध और ग्रहण जैसी दो महत्वपूर्ण घटनाएं एक ही समय में घटित हो सकती हैं। माना जा रहा है कि एक पक्ष में दो ग्रहण पड़ना अशुभ माना जाता है। उनके अनुसार, घाघ ने अपनी कविता में लिखा कि एक पाख दो गहना, राजा मरै कि सहना। यानी एक पक्ष में दो ग्रहण लगे तो राजा या प्रजा में से कोई एक मरेगा।