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कोरोना में दिखा दिया मृत, खुद को जिंदा साबित करने में लग गये 7 महीने

जनस्वास्थ्य विभाग में डीसी रेट पर 15 साल कार्यरत एक कर्मचारी को स्वंय जिंदा साबित करने के लिए सात महीने लग गए, यहां तक की कागजात में उसे मृत दिखाकर कौशल रोजगार से भी उसका नाम हटा दिया। अब मामला...
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जनस्वास्थ्य विभाग में डीसी रेट पर 15 साल कार्यरत एक कर्मचारी को स्वंय जिंदा साबित करने के लिए सात महीने लग गए, यहां तक की कागजात में उसे मृत दिखाकर कौशल रोजगार से भी उसका नाम हटा दिया। अब मामला डीसी के संज्ञान में आया तो उन्होंने माना कि कर्मचारियों की गलती की वजह से यह हुआ है और उन्होंने इस संबंध में अधिकारियों को निर्देश दिये है कि कर्मचारी के कागजात सही कर उसे कौशल रोजगार में शामिल किया जाए और मामले की जांच के आदेश दिये हैं। शहर की रामलीला पड़ाव कॉलोनी के रहने वाले विजय को अपने मृत होने की कीमत ऐसी चुकानी पड़ी की वह कोरोना कल से लेकर अब तक सैलरी के लिए अधिकारियों के चक्कर काट रहा है और उसे अभी तक एक पैसा नहीं मिला। यहां तक कि विजय को अपने आप को जिंदा साबित करने के लिए सात से आठ माह लग गए। विजय का कहना है कि वह है करीब 15 साल से पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट में डीसी रेट पर कार्यरत है। करोना काल के दौरान कर्मचारियों ने उसे मृत घोषित कर दिया, जब उसे यह पता चला तो उन्होंने अधिकारियों के समक्ष अपने आप को जिंदा साबित तो कर दिया, लेकिन इसी दौरान सरकार की नियमों के अनुसार वह कौशल रोजगार के अधीन होना था, लेकिन कुछ अधिकारियों ने सरकार को भेजी रिपोर्ट में उसे मृत दिखाकर कौशल रोजगार योजना से वंचित रखा। यही नही फिर भी वह नौकरी करता रहा, लेकिन उसे उसका मेहनताना नहीं दिया गया। जिसको लेकर वह है हर अधिकारी के चक्कर लगाता रहा। विजय का कहना है कि कर्मचारियों की गलती का नतीजा वह है अब तक भुगत रहा हैं। सोमवार को परिवेदना समिति की बैठक के दौरान मामला डीसी के संज्ञान में आया तो उन्होंने तुरंत जांच और निगम में शामिल करने के निर्देश दिये।

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