ट्रेंडिंगमुख्य समाचारदेशविदेशखेलबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाफीचरसंपादकीयआपकी रायटिप्पणी

स्ट्रॉबेरी के लिये घातक क्राउन रॉट बीमारी के नए कारक की पहचान, प्रबंधन के प्रयास शुरू

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने स्ट्रॉबेरी के लिए घातक क्राउन रॉट रोग के एक नए रोग कारक कोलेटोट्रीकम निम्फेई की पहचान की है। देश में पहली बार स्ट्रॉबेरी के क्राउन रॉट रोग के लिए नए रोग...
हिसार में कुलपति प्रो. बीआर काम्बोज के साथ वैज्ञानिक। -हप्र
Advertisement

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने स्ट्रॉबेरी के लिए घातक क्राउन रॉट रोग के एक नए रोग कारक कोलेटोट्रीकम निम्फेई की पहचान की है। देश में पहली बार स्ट्रॉबेरी के क्राउन रॉट रोग के लिए नए रोग कारक का पता चला है। इस रोग कारक के द्वारा स्ट्रॉबेरी में पिछले वर्ष लगभग 22 प्रतिशत तक नुकसान हुआ था। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर काम्बोज ने बताया कि वैज्ञानिकों ने इस रोग के प्रबंधन के लिए कार्य शुरू कर दिया है।

डच शैक्षणिक प्रकाशन संस्था एल्सेवियर में प्रकाशित फिजियोंलोजिकल एंड मोलिकुलर प्लांट पैथोलोजी में वैज्ञानिकों ने इस बीमारी की रिपोर्ट को प्रथम शोध रिपोर्ट के रूप में प्रकाशन हेतु स्वीकार कर मान्यता दी है। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक देश में इस बीमारी की खोज करने वाले सबसे पहले वैज्ञानिक हैं। अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने बताया कि स्ट्रॉबेरी के लिए हिसार उत्तरी भारत का बहुत बड़ा क्लस्टर बन चुका है जहां करीब 700 एकड़ में स्ट्रॉबेरी फार्मिंग होती है। हिसार के गांव स्याहड़वा की स्ट्रॉबेरी का स्वाद विदेशों में चखा जा रहा है। आसपास के तीन गांव चनाना, हरिता व मिरान के किसान भी स्याहड़वा से प्रेरित होकर स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं। हिसार जिले में स्ट्रॉबेरी क्लस्टर की शुरुआत 1996 में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने की थी। इस फल की सफल खेती अक्सर विभिन्न जैविक कारकों से बाधित होती है, जिनमें से क्राउन रॉट बड़ी चिंता का विषय है। क्राउन रॉट रोग के मुख्य शोधकर्ता डॉ. आदेश कुमार ने बताया कि शोधकर्ता इस बीमारी के प्रकोप को समझने और इसके प्रभाव को कम करने के लिए लक्षित उपाय विकसित करने में जुटे हुए हैं, जिससे स्ट्रॉबेरी उत्पादन की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। वैज्ञानिकों अनिल कुमार सैनी, सुशील शर्मा, राकेश गहलोत, अनिल कुमार, राकेश कुमार, के.सी. राजेश कुमार, विकास कुमार शर्मा, रोमी, आर.पी.एस. दलाल व शुभम सैनी ने भी इस शोधकार्य में योगदान दिया।

Advertisement

Advertisement