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पुत्र-पुत्रवधू ने बिना बताए किया आवेदन और पिता को मिल गया पद्मश्री

साहित्यकार एवं लेखक डॉ. संतराम देसवाल ने सुनाया हाल-ए-दिल
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हरेंद्र रापड़िया/हप्र

सोनीपत, 27 जनवरी

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तारीख 25 जनवरी। समय दोपहर 1:30 बजे। साहित्यकार डॉ. संतराम देसवाल अपने सोनीपत स्थित निवास पर भोजन के बाद आराम कर रहे थे। तभी उनके मोबाइल पर दिल्ली के एक अनजान नंबर से कॉल आई। बार-बार आ रही इस कॉल को उन्होंने फ्रॉड समझकर अनदेखा कर दिया।

कुछ ही देर बाद उन्हें एक मोबाइल नंबर से कॉल आई जिसे उन्होंने रिसीव कर लिया। उधर से बोलने ने कहा कि हम नयी दिल्ली स्थित गृह मंत्रालय (एमएचए) से बोल रहे हैं। हम इधर से बार-बार लैंडलाइन से कॉल कर रहे हैं मगर आप रिसीव नहीं कर रहे। अगले ही पल उन्होंने बताया कि आपको साहित्य व शिक्षा के क्षेत्र में पद्मश्री पुरस्कार-2025 से सम्मानित किया जाएगा। साथ ही हिदायत दी कि शाम को गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति के भाषण के बाद जारी सूची के बाद ही किसी से इस बारे में बातचीत करें। इस बार तो डॉ. देसवाल को पक्का विश्वास हो गया कि यह जरूर फ्राड कॉल है। कारण उन्होंने पद्मश्री के लिए आवेदन ही नहीं किया था।

डॉ. देसवाल आराम की मुद्रा से बाहर निकलकर ख्यालों में खो गये। भले ही उन्हें यह फ्रॉड कॉल लग रही हो मगर इस कॉल ने उनकी बरसों पहले की पद्मश्री पुरस्कार की हसरत को जगा दिया। शाम तक इसी उधेड़बुन में लगे रहे। शाम को सोशल मीडिया पर वायरल सूची में अपना नाम पाकर एकबारगी उन्हें विश्वास नहीं हुआ। इसी बीच गुरूग्राम पावर ग्रिड में उपमहाप्रंबधक के पद पर कार्यरत उनके बेटे का फोन आया और उन्होंने बताया कि पापा आपके नाम को पद्मश्री पुरस्कार के लिए शामिल किया गया है। राष्ट्रपति द्वारा उन्हें यह पुरस्कार दिया जाएगा। उनके बेटे ने डॉ. देसवाल को सारा हाल बताया कि कैसे उन्होंने अपनी पत्नी (विश्वविद्यालय में डिप्टी रजिस्ट्रार) के साथ मिलकर आपकी ओर से पद्मश्री के लिए आवेदन किया था। यह सुनकर डॉ. देसवाल कुछ रिलेक्स तो हुए मगर अभी भी ऊहापोह की स्थिति से बाहर नहीं निकल पा रहे थे। साहित्यकार एवं लेखक डॉ. संतराम देसवाल ने इसकी पुष्टि के लिए दैनिक ट्रिब्यून के संवाददाता को फोन कॉल कर सारा ब्योरा दिया और कहा कि कोई ऐसी सूची जारी हुई हो तो उन्हें भी भेजना। कुछ ही देर बाद दैनिक ट्रिब्यून संवाददाता ने उन्हें सूची भेजकर बधाई दी और कहा कि आपको पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। गृह मंत्रालय द्वारा जारी सूची में उनका नाम शामिल है। यह सुनने के बाद डॉ. देसवाल को पक्का विश्वास हो गया कि उन्हें पद्मश्री पुरस्कार दिया जाएगा।

संघर्ष भरे दिनों से सम्मान तक का सफर

झज्जर जिले के खेड़का गुज्जर गांव में जन्मे डॉ. देसवाल ने बचपन में ही पिता को खो दिया। आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने शिक्षा के लिए संघर्ष किया। रोजाना 15 किलोमीटर का सफर कभी पैदल तो कभी साइकिल से तय कर पढ़ाई पूरी की। हिंदी और अंग्रेजी में एमए, एलएलबी, एमफिल, पीएचडी समेत कई डिग्रियां हासिल करने वाले डॉ. देसवाल ने साहित्य के क्षेत्र में अपनी विशेष पहचान बनाई। पद्मश्री से पहले डॉ. देसवाल को महाकवि सूरदास आजीवन साधना सम्मान, लोक साहित्य शिरोमणि सम्मान और लोक कवि मेहर सिंह पुरस्कार जैसे एक दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित सम्मान मिल चुके हैं।

साहित्य और शिक्षा में योगदान

डॉ. देसवाल ने 30 से अधिक पुस्तकें लिखीं, जिनमें कविता, यात्रा वृत्तांत और ललित निबंध शामिल हैं। उनकी कृति ‘हरियाणा, संस्कृति और कला’ को विशेष पहचान मिली। वे सोनीपत के छोटूराम आर्य कॉलेज में तीन दशक तक एसोसिएट प्रोफेसर रहे। उनकी पत्नी डॉ. राजकला देसवाल भी हिंदी की प्रोफेसर रही हैं।

डॉ. चंद्र त्रिखा की प्रेरणा से डॉ. देसवाल ने लिखी पहली पुस्तक

हिंदी साहित्य में डॉ. संतराम देसवाल का नाम सम्मान और प्रेरणा का प्रतीक है। उनकी साहित्यिक यात्रा का आरंभ तब हुआ जब साहित्यकार डॉ. चंद्र त्रिखा ने उनसे ‘हरियाणा, संस्कृति और कला’ पुस्तक लिखने का आग्रह किया। यह उनकी पहली रचना थी, जिसके बाद कविता, संस्मरण, यात्रा-वृतांत और ललित निबंधों की श्रृंखला अनवरत चलती रही। डॉ. देसवाल ने सोनीपत के छोटूराम आर्य कॉलेज में 30 वर्षों तक एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं दीं और साहित्य जगत में 30 से अधिक पुस्तकें लिखकर अपनी अमिट छाप छोड़ी। उनकी धर्मपत्नी, डॉ. राजकला देसवाल भी राजकीय कॉलेज में हिंदी की प्रोफेसर रही हैं, जिससे साहित्य उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया। डॉ. देसवाल को उनकी अद्वितीय साहित्यिक कृतियों के लिए महाकवि सूरदास आजीवन साधना सम्मान, लोक साहित्य शिरोमणि सम्मान, और लोक कवि मेहर सिंह पुरस्कार समेत एक दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित सम्मान मिल चुके हैं।

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