शहद अब भावांतर भरपाई योजना में शामिल, 120 रुपये प्रति किलो का भाव सुनिश्चित
हरियाणा के मधुमक्खी पालकों के हित में सरकार लिया बड़ा फैसला
हरियाणा सरकार ने मधुमक्खी पालकों को शहद का उचित भाव न मिलने से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए बड़ा कदम उठाया है। अब शहद को भी भावांतर भरपाई योजना में शामिल किया गया है। इसके तहत कच्चे शहद का न्यूनतम भाव 120 रुपये प्रति किलो तय किया गया है। इससे मधुमक्खी पालकों की आमदनी बढ़ेगी और उनकी आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
जिला उद्यान अधिकारी डॉ. प्रेम यादव ने बताया कि महेन्द्रगढ़ समेत पूरे प्रदेश में किसान पारंपरिक खेती के साथ मधुमक्खी पालन भी कर रहे हैं। हालांकि, बाजार में कई बार शहद के कम भाव मिलने के कारण मधुमक्खी पालन में लोगों की रूचि कम हो रही थी। मधुमक्खी पालक लंबे समय से शहद को भावांतर भरपाई योजना में शामिल करने की मांग कर रहे थे, जिसे अब सरकार ने मंजूरी दे दी है।
मधुमक्खी पालक अब हनी ट्रेड सेंटर, आईबीडीसी, रामनगर (जिला कुरुक्षेत्र) में अपना शहद बेच सकेंगे। जिले के कई मधुमक्खी पालक अपने बक्सों को राजस्थान, हिमाचल, उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रों में ले जाते हैं, जहां फूलों की उपलब्धता अधिक होती है।
उदाहरण के लिए, राजस्थान में बाजरा, सरसों और जांडी के फूलों से, हिमाचल में सेब के फूलों से और कश्मीर में अकेशिया के फूलों से मधुमक्खियां शहद बनाती हैं। डॉ. यादव ने बताया कि भावांतर भरपाई योजना में शहद को शामिल करने से मधुमक्खी पालन को बढ़ावा मिलेगा। योजना के तहत मधुमक्खी पालन के बक्सों पर 85 प्रतिशत और अन्य उपकरणों पर 75 प्रतिशत तक अनुदान प्रदान किया जाएगा।
भावांतर भरपाई योजना की पात्रता
योजना का लाभ केवल उन्हीं मधुमक्खी पालकों को मिलेगा जो मधुक्रांति पोर्टल पर पंजीकृत हों और बागवानी अधिकारी द्वारा सत्यापित हों। न्यूनतम 500 किलो शहद फूड ग्रेड बाल्टी में हनी ट्रेड सेंटर पर बिक्री के लिए जमा करना होगा। पंजीकरण की अंतिम तिथि 30 अक्तूबर और सत्यापन की अंतिम तिथि 15 नवंबर 2025 है। इसके उपरान्त सत्यापन अवधि 31 दिसंबर 2025 तक रहेगी।
आगामी वर्षों में पंजीकरण 1 दिसंबर से 31 मई तक और सत्यापन जनवरी से जून तक किया जाएगा। प्रत्येक मधुमक्खी पालक को अपने बक्सों पर परिवार पहचान पत्र के अंतिम चार अंक उत्कीर्ण करने होंगे ताकि सत्यापन में पहचान सुनिश्चित हो सके। सरकार का यह कदम हरियाणा में मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने और किसानों की आय को स्थिर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
