साइंस व पीजी कक्षाओं की बाट जोह रहा दूबलधन का राजकीय महाविद्यालय
झज्जर जिले के गांव दूबलधन कॉलेज का जिक्र चलता है तो यह हरियाणा के उन शिक्षा केंद्रों में से एक है जो 70 के दशक में ही उच्चतर शिक्षा सेवा में जुट गया था। जब हरियाणा के बड़े-बड़े गांव में स्कूल नहीं थे, उस समय दूबलधन में कॉलेज संचालित हो गया था। 20 अप्रैल, 1973 को इस महाविद्यालय की आधारशिला रखते हुए तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री उमाशंकर दीक्षित ने कहा था कि यह महाविद्यालय शांति निकेतन की तरह देहाती क्षेत्र के लोगों की शिक्षा सेवा करेगा तथा यह शिक्षा का एक उत्कृष्ट संस्थान भी बनेगा। क्योंकि यहां का परिवेश शिक्षा मंदिर के अनुकूल है। पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रोफेसर शेर सिंह ने इसे देहात का कांगड़ी विश्वविद्यालय कहकर इसके उज्जवल भविष्य की कामना की थी। जहां पर देश-विदेश के छात्र उच्च कोटि की शिक्षा ग्रहण करने आते थे। परंतु समय के थपेड़े खाते हुए राजकीय महाविद्यालय दूबलधन अपना अस्तित्व बचाए रखने में तो कामयाब रहा परंतु यह अपने वैभव और पराक्रम का विस्तार नहीं कर सका। यदि देखें तो महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक से यह आयु में 5 साल बड़ा है तथा छारा,मातनहेल और बिरोहड़ जैसे कॉलेज तो इसके आगे शिशु हैं। जबकि इन कॉलेजों में विज्ञान और पीजी की कक्षाएं चल रही हैं तथा दूबलधन कॉलेज में अब तक कला संकाय के सीमित विषय ही उपलब्ध है। यह महाविद्यालय सरकारों की बेरुखी का शिकार ही रहा है। यहां यह बात उल्लेखनीय है कि इस इलाके के लोगों ने इस महाविद्यालय को खड़ा करने के लिए अपना तन मन धन न्यौछावर कर दिया था। 64 एकड़ भूमि तथा स्थानीय महिलाओं ने अपने जेवर तक दान में दे दिए तथा इसका सुसज्जित भवन खड़ा कर दिया। इसे मैथ मास्टरों की टकसाल कहा जाता था। अगस्त 1979 में चौधरी भजनलाल ने पूर्व तत्कालीन केंद्रीय मंत्री प्रोफेसर शेर सिंह की सिफारिश पर इसे सरकारी काॅलेज बनाया था।
इस कॉलेज को बनाने व संचालित करने में प्रोफेसर शेर सिंह, प्रिंसिपल हुकम सिंह, सूबेदार जगलाल, महाशय फतेह सिंह व भरत सिंह पाहरू आदि विभूतियों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। वर्तमान में कर्मवीर गुलिया की रहनुमाई में यह महाविद्यालय उच्च कोटि का सेवा माहौल देने में प्रयासरत है तथा विज्ञान और पीजी कक्षाओं के लिए उच्चतर शिक्षा विभाग में कई वर्षों से आवेदन की पंक्ति में खड़ा है। 16 अगस्त को महाविद्यालय में इलाके के जागरूक प्रतिनिधियों तथा एल्यूमिनाई की एक पंचायत बुलाई गई है जो इसे विश्वविद्यालय सत्र का संस्थान बनाने की रूपरेखा तैयार करेगी। माजरा निवासी डॉक्टर दयानंद कादयान का कहना है कि यह महाविद्यालय एनईपी 2020 की के सभी मानकों और कसौटियों पर खरा उतरता है। अतः यह एक बहुत ही अच्छा विश्वविद्यालय साबित होगा। पूर्व जिला परिषद मास्टर जय भगवान का कहना है कि जब महेंद्रगढ़ के पाली जाट में केंद्रीय विश्वविद्यालय संचालित हो सकता है तो दुर्वासा की तपोभूमि तो शिक्षा के मामले में बहुत ही उर्वर है। जबकि नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालय का पुनरुद्धार करवाया जा रहा है। महर्षि दुर्वासा के नाम पर यहां विश्वविद्यालय स्थापित होना चाहिए। अब देखना है कि 50 वर्ष की आयु पार कर चुका यह संस्थान विश्वविद्यालय स्तरीय उच्चत्तर शिक्षा केंद्र बनता है या फिर यह अपने पुराने ढर्रे से ही इस इलाके की शिक्षा सेवा करता रहेगा।