मुख्य समाचारदेशविदेशहरियाणाचंडीगढ़पंजाबहिमाचलबिज़नेसखेलगुरुग्रामकरनालडोंट मिसएक्सप्लेनेरट्रेंडिंगलाइफस्टाइल

महेंद्रगढ़ में डीएपी खाद की किल्लत, सरसों की बुवाई से पहले किसानों की बढ़ी चिंता

महेंद्रगढ़ जिले में रबी सीजन की तैयारियों के बीच किसानों के सामने इस बार डीएपी खाद की कमी बड़ी समस्या बनकर खड़ी हो गई है। आमतौर पर अक्तूबर के पहले सप्ताह में किसान सरसों की बुवाई शुरू कर देते हैं,...
Advertisement
महेंद्रगढ़ जिले में रबी सीजन की तैयारियों के बीच किसानों के सामने इस बार डीएपी खाद की कमी बड़ी समस्या बनकर खड़ी हो गई है। आमतौर पर अक्तूबर के पहले सप्ताह में किसान सरसों की बुवाई शुरू कर देते हैं, लेकिन इस बार सहकारी समितियों में खाद उपलब्ध कराने की प्रक्रिया जटिल कर दी गई है।

किसानों को तीन बैग डीएपी के साथ 1,400 रुपये कीमत का एक बैग एनपीके खाद अनिवार्य रूप से खरीदना पड़ रहा है। कई समितियां जिंक, सल्फर और टीएसपी खाद लेने का दबाव भी बना रही हैं। किसानों का कहना है कि अनावश्यक खाद खरीदने से लागत लगभग दोगुनी हो गई है, जिससे उनकी खेती पर असर पड़ रहा है।

Advertisement

नकदी फसल सरसों ही किसानों की आमदनी का आधार

जिले में हर साल लगभग डेढ़ लाख हेक्टेयर में सरसों की बुवाई होती है, जो क्षेत्र की एकमात्र नकदी फसल है। यह इलाका मुख्य रूप से वर्षा आधारित खेती पर निर्भर है। नांगल चौधरी और निजामपुर जैसे क्षेत्रों में भूजल स्तर काफी नीचे है और लगभग 60 प्रतिशत भूमि नहर सिंचाई पर निर्भर नहीं है। ऐसे में सरसों किसानों के लिए बेहतर विकल्प मानी जाती है क्योंकि इसे कम पानी की आवश्यकता होती है। हाल ही में हुई बारिश से खेतों में नमी बनी है, जिससे किसान बुवाई को लेकर उत्साहित थे, लेकिन खाद की कमी ने उनकी चिंता बढ़ा दी है।

किसानों की प्रतिक्रिया

स्थानीय किसानों अशोक कुमार, बाबूलाल, बिक्रम सिंह, हवासिंह और राजेश कुमार ने बताया कि उन्होंने कृषि विभाग को समस्या से अवगत कराया, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। मजबूरी में वे अतिरिक्त खाद खरीद रहे हैं या डीएपी के बिना ही खेत तैयार करने पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सहकारी समितियों द्वारा जबरन खाद बेचे जाने से लागत बढ़ रही है और लाभ की संभावना कम हो रही है।

कारण और समाधान

जानकारी के अनुसार, डीएपी का आयात निजी कंपनियां करती हैं। डॉलर की मजबूती से आयात लागत बढ़ गई है, जबकि सरकार ने प्रति बैग कीमत 1,350 रुपये तय की है। घाटे की भरपाई के लिए कंपनियां एनपीके, सल्फर और जिंक जैसे उत्पाद डीलरों के माध्यम से किसानों पर थोप रही हैं। डीलरों का कहना है कि जबरन बिक्री से किसान नाराज हैं और उर्वरक कारोबार भी प्रभावित हो रहा है।

कृषि विभाग के अधिकारी डॉ. हरीश यादव ने बताया कि सरसों की बुवाई का उपयुक्त समय 15 से 22 अक्टूबर है। अभी तापमान अधिक होने से अगेती बुवाई पर रोग लगने का खतरा रहता है। वहीं, क्यूसीआई डॉ. संजय यादव के अनुसार, डीएपी के कम होने पर एनपीके 12:32:16 और 20:20:0:13 जैसी उर्वरक किस्में उपयुक्त हैं, जो सरसों की फसल को ठंड सहन करने और दाने के आकार को बेहतर बनाने में मदद करती हैं।

 

Advertisement
Tags :
Dainik Tribune Hindi NewsDainik Tribune newsharyana newsHindi News
Show comments