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जिंदा कर्मचारी को मृत दिखाने का मामला : मानवाधिकार आयोग ने लिया संज्ञान, 4 सप्ताह में रिपोर्ट देने के निर्देश

11 अगस्त को जिला लोक संपर्क एवं परिवेदना समिति की मीटिंग में उठा था मामला
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हरियाणा मानवाधिकार आयोग ने पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट के एक जीवित कर्मचारी को मृत घोषित करने के मामले में स्वतः संज्ञान लिया है। आयोग अध्यक्ष ललित बतरा और सदस्य कुलदीप जैन व दीपक भाटिया ने विभागीय अधिकारियों को 4 हफ्ते में रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं।

आयोग ने कहा कि इस गलती से कर्मचारी को न केवल वेतन से वंचित रहना पड़ा बल्कि उसे अपमान और मानसिक कष्ट भी झेलना पड़ा। आयोग ने शेक्सपियर के नाटक जूलियस सीज़र का जिक्र करते हुए कहा कि सामान्यतः मृतक का असर जीवितों से अधिक होता है, लेकिन इस मामले में एक जीवित कर्मचारी को रिकॉर्ड में मृत दिखा दिया गया। गौरतलब है कि रामलीला पड़ाव निवासी विजय कुमार को विभाग ने मृत घोषित कर दिया था।

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बैठक में सुनाई थी व्यथा

11 अगस्त को विजय कुमार ने अपनी पीड़ा जिला लोक संपर्क एवं परिवेदना समिति की बैठक में डीसी धर्मेंद्र सिंह के सामने रखी। बैठक में विजय कुमार रो पड़े और बताया कि कैसे उन्हें विभाग द्वारा मृत घोषित कर वेतन से वंचित कर दिया गया। डीसी ने तत्काल प्रभाव से लंबित मानदेय जारी करने और उन्हें हरियाणा कौशल रोजगार निगम (एचकेआरएन) में पोर्ट करने के आदेश दिए।

विजय कुमार पिछले 16 वर्षों से अस्थायी कर्मचारी के तौर पर सेवाएं दे रहे हैं। उनके पास पीएफ खाता, हाजिरी लॉग बुक, और लेबर कोर्ट से भी उनके पक्ष में आदेश हैं। इसके बावजूद विभागीय लापरवाही से उन्हें कई महीनों का वेतन नहीं मिला।

आयोग ने दिए ये निर्देश

प्रोटोकॉल, सूचना एवं जन संपर्क अधिकारी डा. पुनीत अरोड़ा ने बताया कि आयोग ने आदेश दिया है कि कर्मचारी वेतन बहाल किया जाए, सभी रिकॉर्ड सही किए जाएं और सुनिश्चित करें कि भविष्य में किसी भी कर्मचारी को इस प्रकार की विसंगति व अन्यायपूर्ण स्थिति का सामना न करना पड़े।

आयोग ने पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट, पंचकूला के मुख्य अभियंता, रोहतक सर्कल के अधीक्षण अभियंता और एक्सईएन रोहतक को यह निर्देश दिया है कि वे 4 सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करें। इसके साथ आधार रिकॉर्ड में सुधार की रिपोर्ट रोहतक के एडीसी तथा हरियाणा सरकार के नागरिक संसाधन सूचना विभाग (सीआरआईडी) के आयुक्त एवं सचिव से अगली सुनवाई से पूर्व रिपोर्ट मंगाई गई है। आयोग ने अगली सुनवाई की तारीख 23 सितंबर निर्धारित की है।

आयोग ने कहा कि लंबे समय तक वेतन न मिलने से कर्मचारी को आर्थिक व मानसिक पीड़ा सहनी पड़ी, जो गरिमा और सम्मानजनक जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। इसे संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय वाचा के अनुच्छेद 7 के खिलाफ भी बताया।

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