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जैन मुनि आश्रम में मनाया आचार्य भिक्षु का परिनिर्वाण दिवस

हालुवास गेट फाटक स्थित जैन मुनि आश्रम में पूज्यश्री मनक मुनि महाराज के पावन सान्निध्य में तेरापंथ प्रवर्तक, महान क्रान्तिकारी, अनेक योग शक्तियों के धारक शक्तिपुंज आचार्य भिक्षु का परिनिर्वाण दिवस चरमोत्सव के रूप में उल्लास व भक्तिमय वातावरण में...
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भिवानी में शुक्रवार को उपस्थितजनों को संबोधित करते आचार्य मनक मुनि। -हप्र
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हालुवास गेट फाटक स्थित जैन मुनि आश्रम में पूज्यश्री मनक मुनि महाराज के पावन सान्निध्य में तेरापंथ प्रवर्तक, महान क्रान्तिकारी, अनेक योग शक्तियों के धारक शक्तिपुंज आचार्य भिक्षु का परिनिर्वाण दिवस चरमोत्सव के रूप में उल्लास व भक्तिमय वातावरण में मनाया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. उषा जैन ने किया।

उन्होंने बताया कि आचार्यश्री मिक्षु का जीवन तपोमय, त्यागमय तथा संघर्षमय रहा। कष्टों की परवाह न करते हुए उन्होंने धर्मक्रान्ति का बिगुल बजाया तथा तेरापंथ के रूप में अनुशासित मर्यादित धर्म संघ की स्थापना की। आचार्य भिक्षु में आत्मबल, मनोबल, तपोबल, योगबल व श्रद्धाबल का अद्भुत संयोग था। वे युग द्रष्टा एवं सत्य ग्राही संत थे। शुक्रवार को जैन मुनि आश्रम में मनक मुनि महाराज ने आचार्य श्री भिक्षु के जीवन, दर्शन व सिद्धान्तों पर प्रकाश डाला।

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उन्होंने बताया कि आचार्य भिक्षु युग द्रष्टा थे, नई धारा के स्रष्टा एवं सत्य ग्राही संत थे, जिन्होंने सत्य के लिए सुख सुविधा, पद-प्रतिष्ठा सबका त्याग कर दिया। नई धर्मक्रान्ति व शुद्ध आचार-विचार की प्रतिष्ठा करने के लिए वर्षों तक उन्होंने विरोधों तथा संघर्षों का सामना किया, उनमें आत्मबल, मनोबल, तपोबल, योगबल व श्रद्धाबल का अद्भुत संयोग था। वे बचपन से प्रतिभावान, बुद्धिमान व विरक्त थे। आचार्य भिक्षु विरले जीवन्त चामत्कारिक सन्तों में एक थे। अन्तिम समय में सिरियारी राजस्थान में 17 वर्ष की अवस्था में आज के दिन ध्यान समाधि पर बैठे और अनशनपूर्वक उन्होंने समाधि मरण का वरण किया था। सिरियारी का समाधि स्थल महान शक्ति स्थल के रूप लाखों लोगों के श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ हैं, जहां श्रद्धेयश्री भिक्षु का नाम ही मंत्र है।

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