गुरु तेग बहादुर साहिब के दर्शन को जीवन में अपनाने की आवश्यकता : डॉ. जगदीप
पंजाबी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहादत के 350वें वर्ष को समर्पित एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया गया। ‘श्री गुरु तेग बहादुर जी : दर्शन और चिंतन’ विषय पर आयोजित इस सेमिनार का मुख्य व्याख्यान हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के विद्वान पद्मश्री प्रो. हरमोहिंदर सिंह बेदी ने दिया। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कुलपति डॉ. जगदीप सिंह ने की। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉ. लालचंद गुप्त मंगल मुख्य अतिथि तथा डॉ. सुखविंदर कौर बाठ विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं। विभागाध्यक्ष डॉ. नीतू कौशल ने स्वागत भाषण दिया और डीन भाषाएं डॉ. बलविंदर कौर ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
कुलपति डॉ. जगदीप सिंह ने जोर देकर कहा कि हमें गुरु साहिब के दर्शन को अपने जीवन में अपनाने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि गुरु साहिब की शहादत से संबंधित कार्यक्रमों की श्रृंखला में यह चौथा आयोजन है। पंजाबी विश्वविद्यालय की ओर से गुरु साहिब के जीवन और दर्शन पर आधारित विभिन्न कार्यक्रम और अकादमिक गतिविधियाँ आयोजित की जा रही हैं। उन्होंने कहा कि गुरु साहिब की शख्सियत से हमें सब्र, सहज, त्याग और उदारता जैसे गुण सीखने की आवश्यकता है। उन्होंने विशेष रूप से उल्लेख किया कि गुरु साहिब ने अपनी यात्राओं के दौरान आध्यात्मिक उपदेशों के साथ-साथ अनेक सामाजिक सुधार कार्य भी किए, जैसे बंजर भूमि को आबाद करना, कुएं खुदवाना और तंबाकू जैसी नशे की बुराइयों के विरुद्ध जागरूकता फैलाना आदि। प्रो. हरमोहिंदर सिंह बेदी ने मुख्य व्याख्यान में कहा कि दूसरे धर्म की रक्षा के लिए गुरु साहिब द्वारा दी गई शहादत का ऐतिहासिक महत्व है क्योंकि उन्होंने भय की राजनीति का अंत किया। डॉ. सुखविंदर कौर बाठ ने गुरु साहिब की बाणी और भारतीय ज्ञान परंपरा के संदर्भ में अपने विचार रखे। उद्घाटन सत्र का संचालन डॉ. रजनी प्रताप ने किया।
दूसरे सत्र की अध्यक्षता डॉ. रवि कुमार ‘अनु’ ने की। इस सत्र में डॉ. रविदत्त कौशिक विशेष अतिथि और डॉ. रुपिंदर शर्मा विशेष वक्ता के रूप में शामिल हुए। मंच संचालन डॉ. सोनिया ने किया। विदाई सत्र की अध्यक्षता गुरु नानक देव विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर डॉ. सुधा जितेंद्र ने की। पंजाबी विश्वविद्यालय के सिख विश्वकोश विभाग से डॉ. परमवीर सिंह विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. वरिंदर कुमार ने विदाई भाषण दिया। डॉ. वरिंदरजीत कौर, डॉ. परविंदर कौर और डॉ. रितु ने भी अपने विचार प्रकट किए।