जब तक शिव और शक्ति का मिलन नहीं होता, साधना पूरी नहीं होती : साध्वी ऋतम्भरा
नालागढ़ उपमंडल के खेड़ा में चल रही श्रीराम कथा के तीसरे दिन दीदी मां साध्वी ऋतम्भरा जी ने अपने प्रवचनों से श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया। उन्होंने श्रीराम जन्म के प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि जीवन का उद्धार तभी संभव है जब मनुष्य प्रभु राम की शरण में जाता है। यदि मन भटकता भी हो, तो भी अपने इष्ट का नाम जप करते रहना चाहिए, क्योंकि एक दिन मन स्वयं उस नाम में रमने लगता है।
मनोकामना पूरी होने के बाद भी व्यक्ति संतुष्ट नहीं होता : साध्वी ऋतंभरा
दीदी मां ने कहा कि जब तक शिव और शक्ति का मिलन नहीं होता, तब तक साधना सिद्ध नहीं होती। उन्होंने समझाया कि लोग ईश्वर की शरण मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए लेते हैं, लेकिन मनोकामना पूरी होने के बाद भी व्यक्ति संतुष्ट नहीं होता, क्योंकि मन कभी तृप्त नहीं होता। जो व्यक्ति अभावों में भी प्रभावित नहीं होता, वही सच्चा संतुलित जीवन जी पाता है।
वात्सल्य की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि जैसे गाय अपने नवजात बछड़े के शरीर की गंदगी को जीभ से साफ कर उसे उज्ज्वल बनाती है, वैसे ही मां का प्रेम ही वात्सल्य कहलाता है। उन्होंने कहा कि जननी और मां में अंतर है, जननी जन्म देती है, लेकिन मां वह होती है जो स्नेह देकर बच्चे का पालन करती है। उन्होंने कहा, “माता-पिता के चरणों में ही चारों धामों का सुख है, इसलिए अपने माता-पिता को कभी भी अपने से दूर न करें।”
उन्होंने कहा कि विवाह के बाद जब पार्वती जी कैलाश पर भगवान शिव के पास आईं, तो उन्होंने भगवान से राम कथा सुनने की इच्छा प्रकट की। भगवान शिव ने बताया कि देवर्षि नारद ने भगवान विष्णु को श्राप दिया था कि उन्हें स्त्री-वियोग सहना पड़ेगा। इसी कारण भगवान विष्णु ने अयोध्या में राजा दशरथ के घर श्रीराम के रूप में जन्म लिया।
धूमधाम से मनाया श्रीराम जन्मोत्सव
इस अवसर पर कथा स्थल पर श्रीराम जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया। माताओं-बहनों के उल्लास और भक्ति से पूरा पंडाल झूम उठा। संतों-महंतों ने भी प्रभु राम के बाल स्वरूप के दर्शन किए और आरती के पश्चात कथा का समापन हुआ। कथा स्थल श्रोताओं से खचाखच भरा हुआ था। सामाजिक संस्थाओं के प्रमुखों के साथ विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता भी कथा में उपस्थित रहे।
आयोजन समिति की ओर से श्रद्धालुओं के लिए फेज-1, फेज-2, फेज-3, माजरा, दत्तोवाल, चुहुवाल, बघेरी और बरूणा से कथा स्थल तक निःशुल्क बस सेवा की व्यवस्था की गई है। साथ ही प्रतिदिन दोपहर 1 बजे से 4 बजे तक श्रद्धालुओं के लिए जलेबी, पकोड़े आदि का जलपान भी उपलब्ध कराया जा रहा है।
