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पंजाबी विश्वविद्यालय द्वारा पंजाब की लावारिस संपत्ति या ‘नज़ूल ज़मीन’ पर किया जाएगा सामाजिक-वैधानिक विश्लेषण

पंजाबी विश्वविद्यालय द्वारा पंजाब की लावारिस संपत्ति या ‘नज़ूल ज़मीन’ पर बड़े स्तर पर सामाजिक-वैधानिक विश्लेषण किया जाएगा। विश्वविद्यालय के कानून विभाग के अध्यापक डॉ. राजदीप सिंह को ‘पंजाब स्टेट किसान एवं खेत मज़दूर आयोग, पंजाब’ की ओर से इस...
डॉ राजदीप सिंह
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पंजाबी विश्वविद्यालय द्वारा पंजाब की लावारिस संपत्ति या ‘नज़ूल ज़मीन’ पर बड़े स्तर पर सामाजिक-वैधानिक विश्लेषण किया जाएगा।

विश्वविद्यालय के कानून विभाग के अध्यापक डॉ. राजदीप सिंह को ‘पंजाब स्टेट किसान एवं खेत मज़दूर आयोग, पंजाब’ की ओर से इस अध्ययन हेतु एक महत्वपूर्ण शोध प्रोजेक्ट प्रदान किया गया है।

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डॉ. राजदीप सिंह ‘पंजाब में नज़ूल ज़मीन का सामाजिक-वैधानिक दृष्टिकोण’ शीर्षक वाले इस शोध प्रोजेक्ट में ‘प्रोजेक्ट डायरेक्टर’ के रूप में सेवाएं देंगे। यह प्रोजेक्ट आठ माह की अवधि में पूरा किया जाना है, जिसके लिए पाँच लाख रुपये की वित्तीय सहायता प्राप्त होगी।

डॉ. राजदीप सिंह ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह नया अध्ययन पंजाब में ‘नज़ूल ज़मीन’ का व्यापक स्तर पर सामाजिक-वैधानिक विश्लेषण करेगा, जिसमें विशेष रूप से अनुसूचित जाति ज़मीन स्वामित्व सहकारी सभाओं की भूमिका और कार्यशीलता पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। यह शोध पंजाब के 11 ज़िलों में स्थित कुल 419 सहकारी सभाओं में से कम से कम 150 को अपने दायरे में लेगा।

उन्होंने कहा कि इस प्रोजेक्ट से प्राप्त होने वाले निष्कर्ष नीति निर्माण संबंधी विभिन्न कार्यों के लिए मार्गदर्शन प्रदान करेंगे, हाशिए पर खड़े समुदायों के सशक्तिकरण में योगदान देंगे और राज्य में ज़मीन प्रबंधन एवं कानूनी ढांचे में भविष्य के सुधारों में सहायक सिद्ध हो  सकते हैं।

नज़ूल ज़मीन के बारे में उन्होंने बताया कि नज़ूल ज़मीन भारत में सरकारी स्वामित्व वाली ज़मीन को कहा जाता है। खास तौर पर पंजाब, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में इसे आमतौर पर सीधे तौर पर राज्य संपत्ति के रूप में नहीं संभाला जाता। इसके बजाय इसे प्रायः निजी संस्थाओं, व्यक्तियों या संगठनों को एक निश्चित अवधि के लिए आवासीय, व्यावसायिक या कृषि उद्देश्यों हेतु पट्टे पर दिया जाता है। यह ज़मीन राज्य सरकार की संपत्ति होती है, परंतु इसे मुख्य राज्य संपत्ति नहीं माना जाता। सरकारें इस ज़मीन को विकास को प्रोत्साहित करने, आवास प्रदान करने या विशेष समुदायों—जैसे पंजाब में भूमिहीन अनुसूचित जातियों को समर्थन देने के लिए—अनुसूचित जाति ज़मीन स्वामित्व सहकारी सभाओं जैसी योजनाओं के तहत आवंटित करती हैं या पट्टे पर देती हैं।

उन्होंने कहा कि पंजाब में अधिकांश नज़ूल ज़मीन वही है जहां भूमि सरप्लस या लावारिस होती है, जहाँ मालिक की वसीयत नहीं होती और कानूनी वारिसों की मृत्यु हो जाती है। इसके अतिरिक्त, 1947 में देश के बँटवारे के दौरान मुसलमानों द्वारा छोड़ी गई संपत्तियाँ भी पंजाब में बड़े पैमाने पर इसके दायरे में आती हैं। पंजाबी विश्वविद्यालय के वाइस-चांसलर, डॉ. जगदीप सिंह ने डॉ. राजदीप सिंह को इस महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट के लिए बधाई देते हुए इसे सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए अपनी शुभकामनाएं दीं।

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