चंडीगढ़, 29 अप्रैल (ट्रिन्यू)
पंजाब विश्वविद्यालय के गवर्नेंस रिफार्म्स को लेकर चांसलर एम. वैंकेया नायडू द्वारा बनायी गयी उच्च स्तरीय कमेटी की रपट तैयार होने के बाद पंजाब सरकार ने भी गवर्नेंस रिफार्म्स के संबंध में अपनी एक राय को लेकर आज एक वर्चुअल मीटिंग बुलायी। मुख्यमंत्री की ओर से बुलायी गयी इस मीटिंग में दो लोग तो चांसलर द्वारा गठित की गयी उच्च स्तरीय कमेटी के सदस्य ही थे जिसमें डीपीआई पंजाब परमजीत सिंह और जीएनडीयू के कुलपति प्रो. जसपाल संधू के नाम शामलि थे। पूर्व सीनेटर अशोक गोयल, अनु चतरथ, नवदीप गोयल और रयात बाहरा यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. परविंदर सिंह और पंजाब सरकार के कुछ वरिष्ठ अधिकारी भी मीटिंग में शामिल हुए। मीटिंग में पीयू को लेकर पंजाब के स्टैंड के बारे में चर्चा की गयी। पंजाब ने बैठक में किसी तरह के सुधारों या कमेटी द्वारा विचारे गये मसलों पर कोई चर्चा नहीं की। सदस्यों का कहना था कि पीयू के एक्ट में पहले भी 22 बार संशोधन हो चुके हैं, इसलिये जब कभी इसकी जरूरत पड़ती है तो इसमें संशोधन कर लिया जाता है। हरियाणा और हिमाचल को पीयू के क्षेत्राधिकार से बाहर निकलाना हो, एक्सआफिशियो मैंबर बनाने की बात हो, ग्रेजुएट के चुनाव हो या कोई और मसला हर बार पीयू एक्ट में संशोेधन कर लिया गया। मीटिंग में सवाल उठाया गया कि अभी तक नई शिक्षा नीति लागू ही नहीं हुई, तो इसकी अनदेखी कैसे कर रहे हैं जबकि सीधे गवर्नेंस रिफार्म्स की बात कैसे आ गयी? इसी तरह एनईपी के मुताबिक यूजीसी खत्म हो जानी चाहिए थी लेकिन अभी तक बरकरार है। नई शिक्षा नीति के अगले पन्नों को देख रहे हैं पहले वालों को भी देख लें। इसी तरह चांसलर द्वारा बनायी कमेटी द्वारा यह कहा जाना कि पंजाब के फलां जिलों के कालेज काट दो या जोड़ दो, यह फैसला कोई कमेटी नहीं बल्कि पंजाब को करना है, जो सबसे बड़ा हितधारक है। पंजाब सरकार भी पीयू को 10 फीसदी फंड देती है और उसे विश्वास में लिये बिना कोई कदम नहीं उठाया जा सकता। सबसे बढ़कर पंजाब के 168 कालेज पीयू से जुड़े हैं तो उनके भाग्य का फैसला कोई दिल्ली में बैठकर कैसे कर सकता है? सदस्यों ने प्रशासनिक सुधारों के पीछे की कथित मंशा और पंजाब से पीयू को ‘छीनने’ के इरादे पर भी विमर्श किया। बैठक में बताया गया कि किस तरह से एक सोच के साथ लोकतांत्रिक संस्था की हत्या की जा रही है और निजी हितों के लिये देश की सबसे पुरानी यूनिवर्सिटीज में से एक पीयू को पिछले छह माह से बिना गवर्निंग बॉडी के अपने रहमोकरम पर छोड़ा हुआ है।