दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 11 मार्च
पंजाब विधानसभा के चुनाव इस बार जितने दिलचस्प थे, उतने ही रोचक नतीजे भी आए हैं। बड़े राजनीतिक घरानों के साथ रिश्तों पर भी पंजाब के आम लोगों ने करारी चोट की है। परिवारवाद की राजनीति को पंजाब ने लगभग नकार दिया है। कहीं पिता-पुत्र चुनावों में शिकस्त खा बैठे तो कहीं सास-दामाद को हार का मुंह देखना पड़ा। एक भाई विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहा तो दूसरा खता खा बैठा। चुनावी नतीजों के बाद अब पांच वर्षों तक सत्ता में रही कांग्रेस, विपक्षी दल शिरोमणि अकाली दल, भारतीय जनता पार्टी, किसान मोर्चा के नेता और पूर्व सीएम कैप्टन अमरेंद्र सिंह के पास अब मंथन करने के सिवाय कुछ नहीं बचा है। बार्डर लाइन पर बनी सरकारों में उठापटक की उम्मीदें रहती हैं लेकिन पंजाब के लोगों ने आप को इतना प्रचंड बहुमत दिया है कि अब वह बिना रोक-टोक के पंजाब के लोगों से किए अपने वादों को पूरा कर सकेगी।
नई दिल्ली में लगातार तीसरी बार सत्तासीन आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के सामने राष्ट्रीय राजधानी में तमाम तरह की चुनौतियां थी, लेकिन पंजाब के लोगों ने उन्हें खुलकर बैटिंग करने का मौका दिया है। बेशक, विपरीत परिस्थितियों तथा आधी-अधूरी ताकत के बावजूद उन्होंने दिल्ली में अभी तक बेहतरीन कार्य किए हैं। माना जा रहा है कि अब वे पंजाब को एक ‘मॉडल’ के रूप में लेकर आगे बढ़ेंगे ताकि देश के दूसरे सूबों में भी इस पेश किया जा सके।
पंजाब में चुनाव के दौरान दल-बदल बड़े पैमाने पर हुआ था। चुनाव प्रचार में अलग-अलग झलकियां देखने को मिलीं। परिणाम के बाद भी यहां नये समीकरण सामने आए हैं। चुनावी रण में सबसे चर्चित चेहरा बिक्रमजीत सिंह मजीठिया तथा उनकी पत्नी गुनीव कौर रहीं। अमृतसर पूर्वी से बिक्रमजीत मजीठिया तो चुनाव हार गए हैं, लेकिन पहली बार घरेलू चौखट लांघकर सियासत में कूदीं उनकी पत्नी गुनीव कौर चुनाव मजीठा से विधायक बनने में कामयाब रही हैं।
गुरदासपुर की हवेली भी खूब चर्चाओं में रही। इसके ग्रांउड फ्लोर पर कांग्रेस तो पहली मंजिल पर भाजपा के झंडे लगे थे। कादियां से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ रहे प्रताप बाजवा जीत गए हैं, लेकिन बटाला से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ रहे उनके छोटे भाई फतेहजंग सिंह बाजवा चुनाव हार गए। लंबी से पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल तथा जलालाबाद से उनके बेटे सुखबीर बादल चुनाव हारे हैं। बादल पिता-पुत्र की तरह चंदूमाजरा पिता-पुत्र के साथ भी यही स्थिति बनी है। पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा इस बार अकाली दल की टिकट पर घनौर से तो उनका बेटा हरिंदर पाल सिंह चंदूमाजरा सनौर विधानसभा हलके से चुनाव लड़ रहे थे। दोनों पिता-पुत्र चुनाव हारे हैं। पंजाब की पूर्व सीएम राजिंदर कौर भट्ठल लहरा से तो उनके दामाद विक्रमजीत बाजवा साहनेवाल से चुनाव लड़ रहे थे। ‘आप’ की आंधी के आगे सास व दामाद दोनों ही चुनाव हार गए।
पंजाब के पूर्व कैबिनेट मंत्री राणा गुरजीत सिंह कपूरथला से तो उनका बेटा राणा इंद्रप्रताप कांग्रेस से बागी होकर सुलतानपुर लोधी से निर्दलीय चुनाव लड़ रहा था। पंजाब में राणा पिता-पुत्र ही ऐसे हैं जो यह चुनाव जीते हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी जहां चमकौर साहिब व भदौड़ हलकों से चुनाव लड़े। वहीं उनके भाई डाक्टर मनोहर सिंह ने बागी होकर बस्सी पठाना सीट से चुनाव लड़ा। इस चुनाव में चन्नी ब्रदर भी हारकर घर बैठ गए हैं।