जोगिंद्र सिंह/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 24 मई
पंजाब विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाये जाने को लेकर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में डॉ. संगीता भल्ला की याचिका पर हाईकोर्ट द्वारा केंद्र सरकार पर इस बारे में कोई फैसला लिये जाने के निर्देशों पर कैंपस में इस मसले पर राजनीति तेज हो गयी है। पीयू सीनेट का धड़ा काफी लंबे समय से यह मांग करता आ रहा है कि पीयू को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा मिलना चाहिए और इसके लिये पंजाब से सहमति-पत्र लिया जाना चाहिए। सीनेटर गुरमीत सिंह तो लगभग हर सीनेट मीटिंग में सेंट्रल दर्जे की मांग उठाते आ रहे हैं। पिछली मीटिंग में तो कई अन्य लोगों ने भी उनका साथ दिया था और मजे की बात ये थी कि पंजाब से आने वाले किसी सीनेटर ने इसका विरोध भी नहीं किया था। वामपंथी छात्र संगठनों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। पीएसयू ललकार का कहना है कि पिछले दो वर्षों से केंद्र की भाजपा सरकार पंजाब विश्वविद्यालय को पंजाब से छीन कर केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने के प्रयास कर रही है। नई शिक्षा नीति (2020) के तहत सीनेट, उसके लोकतांत्रिक और सर्वोच्च निकाय को भंग कर पीयू को केंद्रीकृत करने की साजिश, पंजाब के कॉलेजों को पीयू से अलग करने की साजिश रच रही है। लेकिन छात्रों, शिक्षकों और सभी हितधारकों के एकजुट संघर्ष से उन्हें कामयाबी नहीं मिली। पीएसयू ललकार की ओर से जारी बयान में कहा गया कि पिछले महीने गृह मंत्री अमित शाह ने चंडीगढ़ से पंजाब के सेवा नियमों को समाप्त कर दिया और केंद्र के सेवा नियमों को लागू किया। चंडीगढ़ को पंजाब से जोड़ने वाली आखिरी कड़ी पंजाब यूनिवर्सिटी को इस बार हाई कोर्ट के माध्यम से केंद्रीकृत करने का प्रयास किया जा रहा है। अगर ऐसा होता है तो पंजाब यूनिवर्सिटी सीधे केंद्र सरकार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नियंत्रण में आ जाएगी। पंजाब के लगभग 200 संबद्ध कॉलेजों को बेसहारा छोड़ दिया जाएगा या केंद्र द्वारा शासित किया जाएगा। उन्होंने मांग की कि पंजाब यूनिवर्सिटी को स्टेट यूनिवर्सिटी का दर्जा देकर पंजाब को सौंप दिया जाए।
हाईकोर्ट में स्वत: संज्ञान वाला मामला अभी लंबित
तत्कालीन कुलपति प्रो. अरुण कुमार ग्रोवर ने 2016 में सीनेट में बयान दिया था कि पैसे की कमी और सीनेट राजनीति के चलते पीयू को ताला लग जायेगा। उन्होंने सीनेट-सिंडिकेट में राजनीति को लेकर सीनेटरों पर गिद्दों वाली टिप्पणी की थी एवं गवर्नेंस सुधारों को अति आवश्यक बताया था जिसका पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था और केंद्र, पंजाब सहित अन्य सभी हितधारकों को नोटिस जारी किये थे। कोर्ट ने वित्तीय हालत वाले हिस्से को फौरी तौर पर तो हल करा दिया था लेकिन सातवें वेतन आयोग और वित्तीय संकट का स्थायी समाधान नहीं हो पाया था। पीयू में गवर्नेंस सुधारों का मामला अभी भी कोर्ट में लंबित है।