अब प्रदूषित मिट्टी में भी उगेगी शुद्ध सरसों
प्रो. गीतिका ने बताया किया उन्होंने इसके लिए पौधों में पाए जाने वाले एक विशेष हार्मोन और एक फंगस का प्रयोग किया। उन्होंने बताया कि 28-होमोब्रैसिनोलाइड (28-HBL) नामक यह हार्मोन पौधों को कैडमियम प्रदूषण से होने वाले तनाव से निपटने में मदद करता है। पिरिफॉर्मोस्पोरा इंडिका नामक एक लाभकारी फंगस का भी उपयोग किया गया, जो पौधे की जड़ों में रहता है और उसके विकास व फूलने में सहायता करता है। उन्होंने बताया कि अध्ययन में यह स्पष्ट हुआ कि ये दोनों तत्व मिलकर पौधे को जहरीले कैडमियम के प्रभाव से बचाते हैं। ये जड़ में ही कैडमियम को रोक लेते हैं, जिससे वह पौधे के खाने योग्य हिस्सों तक न पहुंच सकें।
शोधार्थी डॉ. गुरविंदर कौर ने बताया कि कैडमियम मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक होता है। इस विधि के प्रयोग से कैडमियम का प्रभाव केवल जड़ों तक ही सीमित रहता है। चूंकि सरसों की जड़ें न तो मनुष्यों द्वारा खाई जाती हैं और न ही पशुओं के चारे के रूप में उपयोग होती हैं, इसलिए यह विधि सुरक्षित है।
उपकुलपति डॉ. जगदीप सिंह ने शोध की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि रसायन-मुक्त कृषि के बढ़ते महत्व के इस दौर में ऐसे शोधों की विशेष प्रासंगिकता है। उन्होंने इस दिशा में और अधिक अनुसंधान को प्रोत्साहित करने की बात कही।